________________
ज्ञानी और अज्ञानी अब मूढ़ तथा ज्ञानी जीव का विशेषपना और भी सुनो -
"ज्ञाता तो मोक्षमार्ग साधना जानता है, मूढ़ मोक्षमार्ग की साधना नहीं जानता।
क्यों? - इसलिए सुनो, मूढ़ जीव आगमपद्धति को व्यवहार कहता है, अध्यात्मपद्धति को निश्चय कहता है; इसलिए आगम अंग को एकान्तपने साधकर मोक्षमार्ग दिखलाता है, अध्यात्म-अंग के व्यवहार को नहीं जानता – यह मूढ़ दृष्टि का स्वभाव है; उसे इसीप्रकार सूझता है। - क्यों? - इसलिये कि आगम-अंग बाह्यक्रियारूप प्रत्यक्ष प्रमाण है, उसका स्वरूप साधना सुगम है। उस बाह्यक्रिया को करता हुआ मूढ़जीव अपने को मोक्ष का अधिकारी मानता है; किन्तु अन्तर्गर्भित जो अध्यात्मरूप क्रिया, वह अन्तर्दृष्टिग्राह्य है, उस क्रिया को मूढ़जीव नहीं जानता। अन्तर्दृष्टि के अभाव में अन्तर क्रिया दृष्टिगोचर नहीं होती, इसलिए मिथ्यादृष्टि जीव मोक्षमार्ग साधने में असमर्थ हैं।"
देखो! इसमें मोक्षमार्ग की कितनी स्पष्टता आई है? मोक्षमार्ग तो अन्तर-अनुभव की अध्यात्मक्रिया में है, उस क्रिया को अन्तर्दृष्टि से धर्मी ही जानता है। मोक्षमार्ग की क्रिया बाह्यदृष्टि से ज्ञात नहीं हो सकती। अज्ञानी तो शुभराग और बाहर की क्रिया को ही देखता है, उसी को वह व्यवहार कहता है तथा मोक्षमार्ग भी उसी को मानता है; अन्तर के सच्चे