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प्रकाशकीय जैन जगत के दैदीप्यमान नक्षत्र कविवर पण्डित बनारसीदासजी द्वारा रचित परमार्थवचनिका पर पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी के प्रवचनों का संकलन प्रकाशित करते हुए हमें अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है। ___ जैन साहित्य-गगन लगभग दो हजार वर्षों से अनेक दिगम्बर सन्तों एवं ज्ञानी गृहस्थ-विद्वानों द्वारा आलोकित होता रहा है, जिनमें कविवर पण्डित बनारसीदासजी का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
प्रस्तुत कृति कवि की गम्भीर एवं प्रौढ़ गद्य रचना है, जिसमें आगम और अध्यात्मपद्धति से जीवद्रव्य की अवस्थाओं का विस्तृत वर्णन है। संसारी जीव की विभिन्न अवस्थाओं के परिप्रेक्ष्य में जीव के परमार्थस्वरूप का एवं स्वसत्तावलम्बनशाली ज्ञान का वर्णन इस कृति की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। ___ आत्मानुभवी सत्पुरुष पूज्य गुरुदेव श्रीकानजी स्वामी, इस युग में आचार्य कुन्दकुन्द आदि दिगम्बर सन्तों एवं आत्मज्ञानी विद्वानों द्वारा लिपिबद्ध जिनवाणी के सरलतम व्याख्याकार हो गए हैं। उनके अन्तर्मुखी पुरुषार्थप्रेरक प्रवचनों के माध्यम से लाखों जीव, वस्तु का परमार्थस्वरूप जानकर परमार्थ मोक्षमार्ग प्रगट करने का पुरुषार्थ कर रहे हैं। निश्चय-व्यवहार की सन्धिपूर्वक जिनागम का मर्म समझाकर, उन्होंने बाह्य क्रियाकाण्ड को ही परमार्थ-मोक्षमार्ग माननेवाले मूढ़ जगत को झकझोर कर परमार्थतत्त्व को समझने का दुर्लभ अवसर प्रदान करके, हम सब पर अनन्त उपकार किया है। उनके सातिशय प्रभावना-योग से सम्पन्न आध्यात्मिक क्रान्ति के फलस्वरूप जनसाधारण में परमार्थ तत्त्व का स्वरूप समझने की क्षमता एवं तद्रूप परिणमन की प्रेरणा प्रस्फुटित हुई है। ___परमार्थवचनिका पर पूज्य गुरुदेवश्री के प्रवचन गुजराती भाषा में श्री दिगम्बर
जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट, सोनगढ़ द्वारा प्रकाशित ‘अध्यात्म संदेश' नामक पुस्तक में प्रकाशित हुए हैं, जिनका हिन्दी अनुवाद, हिन्दी आत्मधर्म के अगस्त, 1981 अंक से दिसम्बर 1982 अंक तक में प्रकाशित हुआ है। किस्तों में प्रकाशित प्रवचनों के पुस्तकाकार-संकलन से पाठकों को प्रस्तुत कृति के आद्योपान्त