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संसारावस्था जीव की अवस्था
उसका विवरण - अन्य-अन्यरूप जीवद्रव्य की परिणति, अन्यअन्यरूप पुद्गल द्रव्य की परिणति ।
उसका विवरण - एक जीव द्रव्य जिसप्रकार अवस्था सहित नाना आकाररूप परिणमित होता है, वह अन्य जीव से नहीं मिलता; उसका और प्रकार है । इसीप्रकार अनंतानंतस्वरूप जीव द्रव्य अनंतानंतस्वरूप अवस्था सहित वर्त्त रहे हैं। किसी जीवद्रव्य के परिणाम किसी अन्य जीव द्रव्य से नहीं मिलते। इसीप्रकार एक पुद्गलपरमाणु एक समय में जिसप्रकार की अवस्था धारण करता है, वह अवस्था अन्य पुद्गलपरमाणु द्रव्य से नहीं मिलती; इसलिए पुद्गल द्रव्य की अन्य-अन्यता जानना ।
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मुक्तावस्था में तो जीव और पुद्गल की परिणति भिन्न ही है; परन्तु संसारावस्था में जीव और पुद्गल का संयोग होने पर भी दोनों की परिणति भिन्न ही है; कोई एक दूसरे की परिणति में हस्तक्षेप नहीं करता।
संसारावस्था में किन्हीं भी दो जीवों की परिणति सर्वप्रकार से नहीं मिलती, कुछ न कुछ भिन्नता होती ही है। सिद्धदशा में तो सभी गुण सादृश्य को प्राप्त होते हैं; किन्तु संसारदशा तो उदयभाव है, वहाँ जिसप्रकार एक जीव अनेक गुणों की अनेक पर्यायरूप परिणमन करता है। उसीप्रकार अन्य जीव सर्वथा परिणमन नहीं करता; अर्थात् दो संसारी जीवों की परिणति कभी सर्वथा समान नहीं होती । यद्यपि केवलज्ञानादि में तो किसी अपेक्षा से सादृश्य होता भी है; परन्तु औदयिकभावों में कभी भी सादृश्य नहीं होता, किसी न किसी प्रकार की विशेषता या . भिन्नता अवश्य होती है ।
जिसप्रकार जीवों की अवस्था भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है, उसीप्रकार उनके निमित्तरूप पुद्गलकर्म की अवस्था में भी विभिन्नता होती है । किन्हीं दो परमाणुओं की अवस्था भी सर्वप्रकार से एक दूसरे से मिलती नहीं है ।.