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नियमसार अनुशीलन हैं। वह माया क्रोधादिक कषायोंरूपी सांपों का घर है; अत: माया कषाय से सावधान रहना अत्यन्त आवश्यक है।।६३॥ लोभ कषाय के दोषों का निरूपक चौथा छन्द इसप्रकार है -
(हरिणी) वनचरभयाद्धावन् दैवाल्लताकुलवालधिः किल जडतया लोलोवालव्रजेऽविचलं स्थितः। बत स चमरस्तेन प्राणैरपि प्रवियोजितः परिणततृषां प्रायेणैवंविधा हि विपत्तयः ।।३।।
(वीर) वनचर भय से भाग रही पर उलझी पूँछ लताओं में। दैवयोग से चमर गाय वह मुग्ध पूँछ के बालों में। खड़ी रही वह वहीं मार डाला वनचर ने उसे वहीं। इसप्रकार की विकट विपत्ति मिलती सभी लोभियों को॥६३|| वन में रहनेवाले शिकारी भील आदि मनुष्य और शेर आदि मांसाहारी पशुओं के भय से भागती हुई गाय की पूंछ दुर्भाग्य से कांटोंवाली लता में उलझ जाने पर जड़ता के कारण बालों के गुच्छे के प्रति लोभ के वश वह गाय वहीं खड़ी रह गई और अरे रे उस गाय को वनचर द्वारा मार डाला गया। तात्पर्य यह है कि बालों के गुच्छे के लोभ में गाय ने प्राण गंवा दिये। जो लोग लोभ, लालच और तृष्णा के वश हैं, उनकी ऐसी ही दुर्दशा होती है, उन पर ऐसी ही विपत्तियाँ आती रहती हैं। __वन में रहनेवाली नील गायों में कुछ गायों की पूँछ चँवरों जैसी होती है, उनकी पूँछ में सुन्दरतम बालों के गुच्छे होते हैं। बालों के उन गुच्छों से चँवर बनाये जाते हैं। इसीकारण उन गायों को चमरी गाय कहा जाता है।
मांसाहारी जंगली जानवर और भील आदि शिकारी उनके पीछे पड़े रहते हैं। वे बेचारी उनके भय से आकुल-व्याकुल होकर यहाँ-वहाँ भागती रहती हैं। ऐसी ही एक गाय, जिसके पीछे वनचर शिकारी लगे १. आत्मानुशासन, छन्द २२३