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________________ मुख्य ग्रन्थकारः संक्षिप्त परिचय अमितगति आचार्य : श्री अमितगति एक परम तत्त्वज्ञानी, परम योगी आचार्य हैं। आपने बहुत-से ग्रन्थ रचे हैं। उनमें धर्मपरीक्षा, सुभाषितरत्नसंदोह, योगसार, तत्त्वभावना व श्रावकाचार मुद्रित हो चुके हैं। आपके गुरु श्री देवसेन जी थे। आचार्य जी के वचन बिल्कुल निष्पक्ष व जिनवाणी के सार को लिये हुए हैं। कानजी स्वामी : श्री कानजी स्वामी भगवान कुन्दकुन्दाचार्य के परम भक्त थे। उन्होंने कुन्दकुन्दाचार्य द्वारा रचित शास्त्र समयसार के अर्थ-गंभीर सूक्ष्म सिद्धांतों को अति स्पष्ट और सरल बनाया है। समयसार में भरे हुए अनमोल तत्त्व रत्नों का मूल्य ज्ञानियों के हृदय में छिप रहा था। उन्होंने वह जगत् को दर्शाया है। श्री कानजी स्वामी ने बहुत-सी प्रसिद्ध रचनाओं पर प्रवचन किये हैं जिनमें मूल में भूल, वीतराग विज्ञान और छहढाला पर प्रवचन विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। मोक्षमार्ग प्रकाशक की किरणें उनकी जानी-मानी रचना है। काशलीवाल, दीपचन्द जी शाह : पण्डित दीपचन्द जी शाह अठारहवीं शताब्दी के प्रतिभा सम्पन्न विद्वान और कवि थे। आप आध्यात्मिक ग्रन्थों के मर्मज्ञ और सांसारिक देह भोगों से उदास रहते थे। आपकी सभी रचनाएँ जैसे अनुभव प्रकाश, आत्मावलोकन स्तोत्र, चिद्विलास, परमात्म पुराण, उपदेश रत्नमाला और ज्ञान दर्पण आध्यात्मिक रस से ओत-प्रोत हैं। इन रचनाओं में ज्ञान दर्पण को छोड़कर शेष सभी रचनाएँ हिन्दी गद्य में हैं जो ढूंढारी भाषा में हैं। कुन्थुसागर जी महाराज, आचार्य : आचार्य कुन्थुसागर जी महाराज, परम-पूज्य गुरु श्री आचार्य शान्तिसागर जी महाराज के प्रमुख गण्य शिष्य थे। मुनि अवस्था में ही आपने मुनिराज श्री सुधर्मसागर जी से संस्कृत भाषा का अभ्यास किया था। 379
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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