SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधना पथ कितने मजबूत है, पर वस्तु पर कितनी मूर्छा है, वह ऐसे प्रसंगों से जीव को पता लगता है। ऐसे प्रसंगों में बहुत विचार करना चाहिए। ऐसे प्रसंगों में जीव को यथार्थ विचार करने का अवसर मिलता है। बहुत लम्बा विचार करे, तो ऐसे प्रसंगों में समकित भी हो जाए। अनाथी मुनि को वेदनीय के समय, संसार का स्वरूप विचारने का मौका मिला और समकित की प्राप्ति हो गई। कपिल को तृष्णा के विचार करते करते केवलज्ञान प्राप्त हुआ। हमें भी विचार करने का अवसर मिला है कि ऐसी मामूली वस्तु प्रत्यक्ष अपने से भिन्न और त्याग करने योग्य है, पाप का बाप, आर्तध्यान कराने वाली, भवोभव अधोगति में ले जाने वाली है। ऐसी वस्तु का सहज में त्याग हुआ तो हर्ष का कारण है। हलाहल विष खाने से एक भव समाप्त होता है, पर परिग्रह की मूर्छा से तो जीव को अनंत भव तक नरक-तिर्यंच गतियों में भटकना पड़ता है। विष से भी अधिक खराब, ऐसी वस्तु तो त्याज्य है, उसका सहज में त्याग हुआ तो हर्ष मानना, शोक नहीं मानना। __रामकृष्ण के एक शिष्य को ज्ञानी के उपदेश से विचार आया कि परिग्रह तो पाप का मूल है, तो उसका त्याग अवश्य करूँ। पर मुझे इस पर मोह बहुत है, तो इसका इलाज क्या हो? उसने एक हाथ में रूपया लिया और दूसरे हाथ में विष्टा ली और विचार करने लगा कि यह रूपया है, इससे खाने पीने की वस्तुएँ मिलती हैं, खाने के बाद वे वस्तुएँ विष्टा बन जाती हैं, तो फिर इनमें और विष्टा में क्या फर्क? ऐसा विचार करके उसने सब परिग्रह को त्याग दिया। फिर जब जब वह रूपये को देखता, तो उसे विष्टा से भी अधिक ग्लानि होती।। एक बार किसी ने उनकी परीक्षा की, एक दो आनी लेकर चुपचाप उनके सिरहाने के नीचे रख दिया। शाम को वे सेज पर सोये तो सारी रात उन्हें नींद नहीं आई। सुबह उठकर वे बिस्तर इकट्ठा करने लगे तो तकिए के नीचे से दो आनी निकली। उन्होंने निश्चय किया कि नींद न आने का
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy