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साधना पथ ... ये पाँच इन्द्रियों के विषय और क्रोधादि कषाय आत्मा के महा शत्रु हैं। जब जीव इनमें एकाकार हो जाता है, तब सत्शास्त्र का उसे लक्ष्य नहीं रहता। स्वच्छंद से यह जीव अनादि काल से भटका है। स्वच्छंद निकालने के लिए ज्ञानी की आज्ञा का पालन करना चाहिए।
सत्पुरुष का योग हो और अनधिकारित्व मिटे तो कार्य बने। मनुष्यभव मिला है, व्यर्थ न जाएँ। अज्ञान के कारण यह जीव बहुत कर्म बाँधता है। यदि मोक्ष पाना हो, तो मोक्ष का उपाय करना पड़ेगा। जीव को पूछो कि तुझे मोक्ष जाना है? यदि जाना हो तो संकल्प-विकल्प, राग-द्वेष को छोड़ने का अभ्यास करना चाहिए। __ शहद का एक बिन्दु खाने से सात गाँव जलाने जितना पाप लगता है। अज्ञानी लोग दवा में खाते हैं, जिससे बहुत कर्म बंध होता है। जीव मानता है कि इससे रोग मिटेगा, किन्तु इससे रोग बढ़ जाता है, इसका ध्यान नहीं। जितनी योग्यता कम होगी उतना भटकना पड़ेगा। शहद के बदले चासणी में, गुड में, पतासे में दवा ले सकते हैं। सत्पुरुष का योग और योग्यता की जरूरत है।
जीव को वैराग्य और उपशम की आवश्यकता है। वैराग्य अर्थात् भोगमें अनासक्त बुद्धि। उपशम अर्थात् जो कषाय स्वयं को होते है, वे होने न देना। जीवने कितने जन्म-मरण किए, पर अभी तक उसे थकान नहीं लगी। . __ पहले के समय में पुस्तक पढ़ने से प्रथम, उस पुस्तक की पूजा करके, फिर मन में भावना करते कि इस पुस्तक से मुझे लाभ हो। उपवासएकासणा आदि पचक्खाण करके आज्ञा लेकर उस पुस्तक का विधि सहित वांचन करते थे।
.. (२६) बो.भा.-१ : पृ.४४ साता-असाता तो सबको आती है, समभाव से वेदन करना चाहिए। गरज जगनी चाहिए। तभी पुरुषार्थ होगा। किसी भी प्रकार की ईच्छा दुःख का कारण है।