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________________ २१० साधना पथ की शुद्धि करना शुरु कर दे। सम्यक्दर्शन ऐसे ही नहीं आता। सात प्रकृत्ति को क्षय करें तो आता है। श्रेणिक राजाने, अनाथी मुनि की बात मानी, मैं राजा होने पर भी अनाथ हूँ, आप सनाथ हो, दिमाग में ठस गया। आत्मा ही नरक में ले जाने वाली है, आत्मा ही मोक्ष में ले जाती है। इस तरह आत्मप्रकाशक बोध मुनि ने दिया, वह उसे बैठ गया और बोधि को प्राप्त किया। भगवान महावीर मिले तब क्षायिक समकित हुआ और तीर्थंकर गोत्र बांधा। अन्तर बदलना चाहिए। वह बदले तो देर नहीं लगती। कृपालुदेव ने कहा है कि एक सूत्र कहते मोक्ष होता है। वैसे सूत्र अनेक बार कहने पर भी जीव नहीं जगता। जीव का अपना कुछ नहीं। मन, वचन, काया भी अपने नहीं, तो फिर बाहर दिखने वाला तो, कैसे अपना हो। ज्ञानी आग्रह छोड़ने को कहते हैं। भव्य जीव हो, वह सुन कर आग्रह छोड़ देता है। प्रभुश्रीजी कहते की 'लोक मूके पोक, तारुं कर' लेकिन जीव तो लोगोंको अच्छा दिखाने के लिए करता है, तो उसे वैराग्य कहाँ से हो? __ मोहनीय कर्म मोह का है। मोह मंद पड़े तो सम्यक्त्व होता है। किसी किसी तिर्यंच को भी समकित होता है, पर उसे मालूम नहीं होता कि शास्त्र में इसे सम्यक्त्व कहते हैं। पर वह इतना समझता है कि देह को होता है, वह मुझे नहीं होता। देहाध्यास छूटता है। जीव को कर्म रुकावट करते हैं। तथापि 'मेरा दोष है' यह समझ नहीं आती। यह तो इसका दोष है, यों मानता है। समता, क्षमा, धीरज, सहनशीलता, ये सब गुण सम्यक्त्व प्रगटाने वाले हैं। ये गुण टिके रहें तो सम्यक्त्व हो। समझे तो सहज में हो, अन्यथा अनन्त उपाय करने पर भी न हो। ... प्रश्नः- क्या समझना है? . उत्तरः- ज्यों ज्यों ज्ञानी की आज्ञा पालें त्यों त्यों व्यक्त और अव्यक्त सब विभाव नाश होते हैं। कर्म के सिर मेख मारने वाले जीव भी थे। क्या कहें, योग्यता नहीं है, ऐसे प्रभुश्रीजी कहते थे। जीव की दशा जैसे
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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