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________________ २०६ साधना पथ उस समय कोई प्रेरक मिले तो काम हो जाएँ। प्रेरक होने पर भी बल तो स्वयं को ही करना पड़ता है। महापुरुषों के वचन जीव को धक्का लगाने वाले होते हैं । उनका अवलम्बन हो तो समकित होता है। जिसने प्रमाद को शत्रु माना है, वह निर्भयता से रहने का स्वप्न में भी नहीं चाहता। प्रमाद शत्रु है, पर लगता नहीं । अनन्त काल में न हुआ वह काम करना कठिन है। बहुत शत्रु हैं, वे खींच लेते हैं । हो जाएगा, हो जाएगा, यों करते हैं। जब तक मोह का क्षय न हो, तब तक ज्ञानी शान्ति से नहीं बैठते । अनन्त बार जीव ग्रन्थिभेद के समीप आकर वापिस गया है। सब कठिनाइयाँ सह कर मरणिया ( शूरवीर) बन जाए तो काम हो सकता है। ग्रंथिभेद होने बाद चौथे गुणस्थानक में जीव आता है। गाय के सींग पर राई का दाना रहे, उतने समय तक भी यदि सम्यक्त्व की स्पर्शना हुई तो देर से या जल्दी मोक्ष में ले जाएगी। चौथे गुणठाणे आएँ उसकी दशा बदल जाती है। ज्ञानीने कर्म देख कर गुण-ठाणा कहा है। चौथे में मोक्ष मार्ग स्पष्ट समझ आता है। "वेद्य बंध शिव हेतु छे जी, संवेदन तस नाण; नयनिक्षेपे अति भलुंजी, वेद्य संवेद्य प्रमाण ।” दीपक के प्रकाश की तरह बोध स्पष्ट लगता है । विरला ही जीव ग्रंथिभेद करके आगे बढ़ता है। चौथे आत्मज्ञान है, पर व्रत आदि की दशा नहीं। ज्ञान, दर्शन, चारित्र ये तीनों वस्तु आत्मा का अनुभव होने पर अंश मात्र होती हैं, पर यह बीजरूप है। अनन्तानुबंधी जाने से स्वरूपरमणशक्ति प्रगट होती है। यह बीज है। अंतरंग में चौथे चारित्र होता है। यह अविरति ठाणा है । फिर जब व्रत का उदय हो, तब इसे चरणानुयोग में चारित्र कहा है। सम्यक्त्व हुआ इससे नींव मजबूत हुई है। मोक्ष सिवा दूसरी चाहना नहीं है। लोगों को दिखाने के लिए वह चारित्र नहीं लेता। जब से समकित हुआ तब से मोक्ष की और मोक्ष के साधन की इच्छा होती है, पर शक्ति न होने से व्रत ले नहीं सकता। शक्ति बढ़े, त्यों त्यों व्रत लेता है । व्रत लेने वाले कोई सम्यकदृष्टि कहते हैं कि देशविरति में क्या लेना ? लेना तो सर्व
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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