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साधना पथ
मिला और मुझे लोग नमस्कार करते हैं। उसे धर्म के प्रति उल्लास भाव जागा । निश्चय और आश्रय पूर्वक देह छोड़ा तो आगामी भव में राजा
बना।
मार्ग का प्रभाव कैसा है! सत्य को पकड़ो तो मोक्ष हो जाएँ। कुछ करता न हो, कुछ समझता न हो परन्तु इस मार्ग का आश्रय पकड़े तो काम हो जाएँ। इंजन के साथ कड़ी जुड़नी चाहिए। यह मार्ग उत्कृष्ट है, ऐसा निश्चय करके, उसीका आश्रय करना चाहिए ।
पर पदार्थ को अपना मानना, मिथ्यात्व है। देह ही मैं यह हो गया है। देह के निमित्त, घर के निमित, कुटुम्ब के निमित हर्ष-विषाद न हो, तो मानो सारी द्वादशांगी समझ में आ गई। सच्चा धर्म कौन सा है ? धर्म किसे कहते हैं? वह बताते हैं :- "वीतराग पुरुषों का धर्म जो देहादि संबंधी हर्षविषादवृत्ति दूर करके 'आत्मा - असंग-शुद्ध-चैतन्य-स्वरूप है', ऐसी वृत्ति का निश्चय और आश्रय ग्रहण कर के उसी वृत्ति का बल रखना।"
वीतराग ने कहा है कि देहादि संबंधी हर्ष - विषाद न करना । यदि इतनी ही पकड़ रखें और दूसरा कुछ न करता हो तो भी चलेगा। 'आत्माअसंग-शुद्ध - चैतन्य स्वरूप है' यह वृत्ति दृढ़ करना है । फिर हर्ष खेद नहीं होता। अन्य वस्तु में न खिंचाओ, यही धर्म है। महावीर भगवान ने दीक्षा
के बाद आँख मसलने जितनी भी शरीर की सँभाल न ली। यह बारंबार याद रखना चाहिए। इस देह से काम कर लेना है । इस देह के प्रति हर्ष - विषाद न हो, इतना मुझे करने दो। पर वस्तु की चिन्ता में जल रहा है; आत्मा का विचार नहीं आता ।
देहादि संबंधी हर्ष-विषाद न करना ही सभी शास्त्रों का सार है सभी शास्त्र बारंबार यही कहते हैं । निःस्पृही पुरुष कैसे निर्मोही होते हैं ! उन्होने देह की परवाह ही नहीं की।
मंद वृत्ति होने पर महापुरुषों के चरित्र स्मरण करना । आत्मा देखने जैसा है। कर्म नहीं देखना। महापुरुषों के चरित्र अद्भुत हैं।