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________________ १८२ साधना पथ प्रथम समकित, दूसरे समकित का कारण है। परमार्थ की अंश में अनुभव से प्रतीति वह समकित का दूसरा प्रकार है। आत्मा का मनन करते, आत्मा का निदिध्यासन करते अर्थात् भावना करते हुए उसमें अंश में अनुभव होता है। यह दूसरा प्रकार है। ___ तीसरे समकित में जीव विकल्प रहित होता है। यद्यपि श्रुत का अवलम्बन तो बारहवें गुणस्थानक तक है। श्रेणी माँडे वहाँ भी वितर्क अर्थात् ज्ञानी के वचन का - श्रुत का अवलम्बन होता है। पृथकत्व-वितर्कविचार से शुक्ल ध्यान में मोहनीय का क्षय होता है और एकत्व-वितर्कविचार से शुक्ल ध्यान में अर्थात् बारहवें गुणठाणे में सब घाति कर्म का क्षय करके केवल ज्ञान प्रगट होता है, वहाँ तक ज्ञानी ने जो उपदेश दिया है वह इसे आधारभूत है। प्रथम पुरुष प्रतीति अर्थात् ज्ञानी सच्चा है, उसके वचन सच्चे हैं, ज्ञानी की आज्ञा ही मुझे पालनी हैं, ऐसी रुचि पहली समकित में होती हैं। दूसरे में ज्ञानी के वचनों का विचार, मनन हो, इससे अज्ञान दूर होता है और आत्मा यह ही है ऐसी समझ आती हैं। तीसरे में निर्विकल्पता है। परमार्थ समकित कहा, उसमें अंश में परमार्थ का अनुभव है। तीसरी दशा मेरी कब आएगी? ऐसी भावना करनी चाहिए। तीनों समकित की भावना रहा करें कि मुझे यह दशा लानी है, तो समकित हो। श्री.रा.प.-७५७ (१४०) बो.भा.-२ : पृ.-३१६. - पूज्यश्रीः- भगवान की वाणी चार प्रकार की है :- १. द्रव्यानुयोग २. चरणानुयोग ३. करणानुयोग ४. धर्मकथानुयोग। द्रव्यानुयोग में छः द्रव्य में मुख्यतः सब आत्मा की बातें आती हैं। करणानुयोग में कर्म की बात आती हैं। चरणानुयोग में चारित्र की बात आती हैं। धर्मकथानुयोग में जीवनचरित्र कहानीरूप में आता है। पाँच परमेष्ठी हैं, उन सब में पूजने योग्य तो “सहजात्मस्वरूप” है। सागर में से बिन्दु जितने शास्त्र इस काल में रह गए हैं। गहन बातें लोग भूल गए हैं। स्थूल-स्थूल वचन रहे हैं। इस काल में मोक्ष नहीं, ऐसा
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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