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साधना पथ आत्मसिद्धि चमत्कारी वस्तु है। सब से हटाकर आत्मा पर लाने वाली है। बड़े बड़े आचार्य थाप खा जाते हैं, उन्हें भी ठिकाने लाने वाली हैं। विशेषरूपसे सोभागभाई को विचार करने को कहा है। श्री.रा.प.-७३६ (१३७) बो.भा.-२ : पृ.-३१ ___आत्मा ज्ञानस्वरूप है। ज्ञान की तारतम्यता से कर्मबन्ध भी होता है। तीव्र ज्ञानदशा आएँ तो बंध न हो। केवलज्ञान से पूर्व पार्श्वनाथ भगवान को कमठ ने उपसर्ग किया था। भगवान सब देखते रहें। गजसुकुमार के सिर पर अंगारे दहकते थे, वह देख रहे थे। वह नेमिनाथ भगवान से सीख आये थे कि सुख-दुःख का संबंध शरीर के साथ है। आत्मा तो परमानन्दरूप है। आत्मस्वभाव का नाश नहीं होता। आत्मा जलने वाली या नाश होने वाली वस्तु नहीं। रागद्वेष के बलवान निमित्त होने पर भी राग-द्वेष या अस्थिरता भी जिसके चित्त में होती नहीं, ऐसे सत्पुरुष हैं। “जिन्होंने तीनों काल में देहादि से अपने को कोई भी संबंध नहीं, ऐसी असंग दशा उत्पन्न की उन भगवानरूप सत्पुरुषों को नमस्कार है।” (श्री.रा.प.-७७९) देहातीत दशा वाले पुरुष कैसे रहते होगें? ऐसा विचार आएँ तो अपना वास्तविक स्वरूप, शुद्धस्वरूप की समझ आएँ। शुद्धस्वरूप में राग-द्वेष नहीं होता। जहाँ असंगता का विचार आएँ वहाँ निर्जरा है। वरना चित्त अन्य विचार या . संकल्प विकल्पमें जाये तो कर्म बंध हो। राग-द्वेष का सर्वथा क्षय होने पर केवलज्ञान होता है। “शुद्धभाव मुझ में नहीं।” वह अपने में नहीं, पर भगवान में तो हैं नँ? उसमें वृत्ति रखें तो निर्जरा हो। महापुरुष शुद्धभाव में ही है। वहाँ यदि चित्त दृढ़ हुआ तो निर्जरा होगी। श्री.रा.प.-७४१
(१३८) बो.भा.-२ : पृ-३११ जैसा बनना हो, उसी में चित्त रखना। सर्वज्ञ बनना हो तो कोई भी काम करने से पूर्व सर्वज्ञ को याद करें, सर्वज्ञ बनने का लक्ष्य रखें।
लौकिक विचार परमार्थ को नाश करते हैं। इस से परमार्थ लाभ अटक जाता है। विकल्प जीवको एक अन्तराय है। लोग कुछ भी कहें पर आत्मा को लाभ होता हो, तो कर लेना। लोगों को संसार रुचता है।