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________________ २७९ - साधना पथ स्वरूप का पता हो तो स्वभाव में रहे। सहजस्वरूप में निरंतर स्थिर रहना, इसका नाम मोक्ष है। उस मोक्ष के साधन सद्गुरु, सद्शास्त्र, सद्विचार, संयमादि हैं। आत्मा है, वह नित्य है, वह कर्म की कर्ता है, वह कर्म की भोक्ता है, मोक्ष है, मोक्ष का उपाय है। ये छः पद सच्चे हैं। जीव कर्म बाँधता है, उन्हें भोगने के क्षेत्र भी हैं। निश्चय से आत्मा केवलज्ञान स्वरूप ही है। निज स्वरूप में आत्मा परिणमे तो केवलज्ञान है। उस स्वरूप की प्रतीति का नाम सम्यक्दर्शन है। उस प्रतीति के निरन्तर रहने का नाम क्षायिक समकित है। क्वचित् मंद, क्वचित तीव्र इस तरह परिवर्तन हो तो वह क्षयोपशम समकित है। थोड़ी सी देर शुद्ध प्रतीति रहे तो वह उपशम समकित है। क्षायिक सम्यक्त्व होने वाला हो, उस समय वेदक सम्यक्त्व होता है। पतित अवस्था में सास्वादन सम्यक्त्व होता है। सम्यकदर्शन होने पर जीवको हर्ष-शोक नहीं होता। मैं - मेरा नहीं होता। जो भाव पूर्वक चारित्र की आराधना करें तो मोक्ष हो। स्वरूप रमणता का नाम चारित्र है। श्री.रा.प.-७२२ .. (१३६) बो.भा.-२ : पृ.-३१० __ शरीर में असाता हो तो सगा संबंधी कोई दुःख नहीं लेते। स्वजन और देह का मोह छोड़ना है। वह असाता के समय छूट सकता है। शरीर का तो सड़न-पड़न और विध्वंसन स्वभाव है। अतः उसका विश्वास नहीं । करना। न जाने कब पड़ जाएँ? आत्मा की मृत्यु नहीं। मोह को साथ लेकर पर भव में नहीं जाना। मन में से सब निकाल देना। प्रभु वीर ने दीक्षा ली तो क्या करते रहे? मोह को क्षय करने का पुरुषार्थ करते रहे। इस के लिए रात दिन झुरते। बिमारी में मोह को मंद करने का विचार करना। थोड़ी बहुत वेदना तो सब को होती है। शरीर वेदना सहित है, जब शरीर का त्याग करना ही है तो फिर मृत्यु के प्रथम देह, कुटुंबादि का मोह छोड़ना। वेदना के समय विचार करें तो सहज ही वैराग्य हो जाएँ। वैराग्य सहित विचार हो तो मोह मंद हो जाएँ। ज्ञानीपुरुष के वचन जीव को जागृत करते हैं। वेदना में समय व्यतीत होता है, वह सद्विचार में बिताएँ तो समकित प्राप्त हो। अनाथीमुनि जैसे को समकित हो गया।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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