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________________ साधना पथ और मिलता है दुःख और आनन्द। सुख ही इसका स्वभाव है। आनन्द है वह वृत्ति है, उल्लास है। दुःख को ही सुख मानता है। वह क्षणिक है और कर्म बन्ध का कारण है। इसलिए वह दुःखी है। प्रथम सत्संग करना चाहिए। सत्संग में कुछ सुनने को, कुछ विचारने को मिलता है। ज्ञानी की और मेरी मान्यता में क्या फर्क है? इसका पता लगता है। सत्संग में वस्तु समझ में आती है। "सूर्य से तपे हुए पत्थर, सूर्यास्त बाद भी अमुक समय तक तपे (गर्म) रहते हैं।” (श्री.रा.प-५०९) उसी तरह ज्ञान होने के बाद भी अज्ञान के संस्कार रहते हैं। उन संस्कारों से सावधान न हो तो फिर से अज्ञानी बन सकता है। जैसा संग वैसा रंग। श्री.रा.प.-६७० (१३२) बो.भा.-२ : पृ.-२७८ . ज्ञानी की प्रवृत्ति परमार्थ के लक्ष्य बिना होती नहीं। वे परमार्थ के लिए ही जीते हैं। कृपालुदेवने लिखा है की ज्ञानी का खाना, पीना सब धर्म है। मुनित्व का उदय आएँ, उस दिन को धन्य है। . संसार में जिसे कदम कदम पर दुःख है, ऐसा महसूस हुआ है और दुःख जाने का उपाय खोजता हो तो ज्ञानी कहते हैं कि आत्मज्ञान से यह दुःख मिट सकता है। आत्मज्ञान बिना कोई जन्म मरण से छुड़ा नहीं सकता। __ चाहे कितने भी व्रत-नियम कर लो, पर आत्मज्ञान बिना पुण्य भोगकर खतम होता है। सर्व प्रथम आत्मज्ञान करना है। जो कुछ करे आत्मज्ञान के लिए। यह ज्ञानी की शिक्षा नहीं भूलना। व्रत-नियम तो एकादि अंक बिना शून्य समान हैं। अभव्य जीव भी व्रत, नियम पालते हैं; तिल जितने टुकडे करने पर भी क्रोध नहीं करते, तो नव ग्रैवेयक तक जाते हैं, परन्तु यह आत्मज्ञान की प्राप्ति के लक्ष्य बिना करते हैं। कषाय कम करें, उतना पुण्य बाँधे। उससे देव सुख मिलता है। परन्तु यह सुख स्थायी नहीं। खाली हाथ वापिस आना पड़ता है। आत्मा को भूल जाते हैं और मैं व्रत करता हूँ, मैं नियम करता हूँ, ऐसा अभिमान आ जाता है। वस्तुतः आत्मज्ञान के बाद व्रत, नियम तो कर्म तोड़ने के शस्त्र हैं, फिर पँच महाव्रत
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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