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________________ साधना पथ १५७ आत्मा निर्भय होती है और सर्व काल अनंत आत्म सुख को पाने वाली बनती हैं, जिनके वचनबल से सर्व भय नाश हो और सदा के लिए आत्मा संपूर्ण आनंद प्राप्त करने वाली बनती हैं, उन वचनों को कहने वाले सत्पुरुष का उपकार वाणी से नहीं कहा जा सकता । सत्पुरुष के वचन अंगीकार हों, दृढ़रूप से परिणमन हों, वहाँ छः पदों से सिद्ध आत्मस्वरूप प्रगट होता है। समकित हुआ, स्वयं को परमात्मरूप ही जाना। अतः अब वाह्य संयोग व्याधि आदि दुःखी नहीं कर सकते, क्योंकि वे तो देह में होते हैं। आत्मा तो सदा देह से भिन्न आनन्दस्वरूप है, ऐसा अनुभव होनेसे भविष्य का कोई भय नहीं रहता। जीव ने सदा निर्भय, आनंदस्वरूप को पाया। मात्र सत्पुरुष के वचनों से यह स्थिति प्राप्त हुई ! उस सत्पुरुष का • स्वरूप शब्दों से वर्णन करना अशक्य है। वे मात्र करुणा भाव से उपदेश करते हैं, न कि किसी बदले की इच्छा से । उनके वचनों से समकित हुआ, अतः साक्षात् उन्होंने आत्मा दिया । प्रथम देह अर्थात् मुर्दारूप स्वयं को मानता था। देह के आधीन भोगों में रक्त हो कर संसार बढ़ाता था। ऐसी अज्ञान दशा में से करुणा सभर सत्पुरुष ने वचनों द्वारा जागृत किया और 'आत्मा हूँ।' यह ज्ञान कराया अर्थात् मुर्दे में से जीवित किया। उसका बदला किसी तरह नहीं दिया जा सकता और सत्पुरुष सर्वथा निःस्पृही हैं। उन्हें उपदेश देने में किसी के प्रति शिष्य बुद्धि या ममत्व बुद्धि नहीं होती; ऐसा विचार भी उन्हें नहीं आता कि यह मुझे उपयोगी है । मेरी सेवा करेगा। वे सिर्फ निष्कारण करुणा से बोध करते हैं। ऐसे सत्पुरुष को अत्यन्त भक्ति से नमस्कार है । सत्पुरुषों ने सद्गुरु की जिस भक्ति का निरूपण किया है, वह भक्ति सिर्फ शिष्य के कल्याण के लिए कही है। जिसको प्राप्त करने से सद्गुरु की आत्मा की चेष्टा में वृत्ति रहे, अपूर्व गुण दृष्टिगोचर होकर अन्य स्वच्छंद मिटे, और सहज में आत्मबोध हो, इस आशय से जो भक्ति का निरूपण किया है। उस भक्ति को और उन सत्पुरुषों को बारंबार त्रिकाल नमस्कार हो !
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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