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साधना पथ यह विचार करने से भी सत्पुरुष पर परम प्रीति प्रगट हो और उनके उपकार को निरन्तर याद करते हुए उनके गुणगान करने से कर्म दुर होते हैं आत्मस्वभाव-समकित प्रगट होता है। ऐसे सत्पुरुषों के चरणारविन्द अर्थात् १. पैर, २. आचरण ३. वचन (कविता के भाग को चरण या पद कहते हैं), सदैव हृदय में बहुमानपूर्वक पूज्य भाव से स्थिर रखो। उस पद का कृपालुदेव ने वर्णन किया है:
'सुखधाम अनन्त सुसंत चही, दिन रात्र रहे तद्ध्यान महीं; परशान्ति अनंत सुधामय जे, प्रणमुं पद ते वर ते जय ते।'
अनन्त सुख के धाम, आत्मस्वरूप को संत निरन्तर चाहते हैं और रात दिन उसी के ध्यान में रहते हैं। वे परम शान्त अनन्त सुखमय दशा का अनुभव करते हैं, ऐसे सत्पुरुष के पद को, दशा को मैं नमस्कार करता हूँ।
परम सुखस्वरूप, परमोत्कृष्ट शान्त, शुद्ध-चैतन्यस्वरूप समाधि को सर्व काल में पाने वाले भगवन्त को नमस्कार। उस पद में निरन्तर लक्ष्यरूप प्रवाह वाले सत्पुरुषों को नमस्कार।
छः पद से सिद्ध ऐसा आत्मस्वरूप, जिन के वचनों को अंगीकार करने पर सहज में प्रगट होता है, जिस आत्मस्वरूप के प्रगट होने से सर्व काल जीव सम्पूर्ण आनन्द को पाकर निर्भय होता है, उन वचनों के कहने वाले सत्पुरुष के गुणों की व्याख्या करना अशक्य है, क्योंकि जिन का प्रत्युपकार न हो सके ऐसे परमात्मभाव मानों कुछ भी इच्छा किये बिना मात्र निष्कारण करुणाशीलता से दिया, तथापि जिन्हें अन्य जीव को, यह मेरा शिष्य है, यह मेरी भक्ति करनेवाला है, इसलिये मेरा है, इस प्रकार कभी नहीं देखा, ऐसे सत्पुरुष को अत्यन्त भक्ति से बारंबार नमस्कार हो!
इन छः पद से आत्मस्वरूप सिद्ध हुआ। सत्पुरुष के वचन अंगीकार करने से वह सहज में प्रगट होता है। सत्पुरुष का योग बल, मन-वचनकाया का बल सम्पूर्ण जगत को और विशेषरूप से भव्य जीवों को परम हितकारी है। आत्मस्वरूप की प्राप्ति के बाद इहलोक, पर लोक, मरण आदि सात भय और अन्य सभी भय देहाश्रित होने से नाश होते हैं। उससे