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________________ साधना पथ भक्ति:- मोक्ष के लिए ज्ञान और भक्ति दो मार्ग है। ज्ञानमार्ग में जो ज्ञान, प्रगट है उसमें एकाग्र होते समकित प्रगटावे, फिर सम्यक्ज्ञान से आराधना करते करते, उसी में स्थिर होते कर्मक्षय करते केवलज्ञान प्रगट होता है। यह मार्ग बहुत विकट है। कोई तीर्थंकर जैसे बलवान पुरुष इसके द्वारा कर्म क्षय कर सकते हैं। मोह बहुत बलवान है, वह उदय में आ कर, आत्मा को राग-द्वेष करा कर, विषयभोग में आसक्त करके समकित से गिरा देता है। समकित होने में प्रथम सत्पुरुष के अवलम्बन से ही बल आता है। जो बलवान पुरुष वर्तमान जन्म में निरालम्बरूप से समकित प्रगट करते है, उन्हों ने भी पूर्व जन्म में सत्पुरुष की आराधना की होती है। अतः समकित होने में सत्पुरुष, ज्ञानी गुरु का अवलम्बन, बलदायक है और जब तक केवल ज्ञान न प्रगटे तब तक ज्ञानी का अवलम्बन सामान्य बल वाले जीवों को जरूर होना चाहिए । ज्ञानी की आराधना करते, उन की आज्ञा में चलते, उनके वचनों को विचारते सुगमता से आत्मभावना की जा सकती है। मानादि शत्रुओं का नाश किया जा सकता हैं। १५२ " भक्ति आदि" साधन कहे, उनमें विनय, दान, तप आदि अनेक साधन आत्मा को कर्म क्षय करने के लिए, ज्ञान प्राप्त कराने के लिए जरूरत के हैं । प्रारम्भ में समकित होने में जीवों को भिन्न भिन्न साधन विशेष हितकारी होते हैं, परन्तु आगे बढ़ते कर्मक्षय का मार्ग सब जीवों के लिए अधिक समान होता जाता है। सम्यक्ज्ञान, दर्शन और चारित्र अथवा संयम, इन उपायों से कर्म का संवर और निर्जरा होकर सम्पूर्ण कर्मक्षय होते मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्री ज्ञानी पुरुषों ने सम्यकदर्शन के मुख्य निवासभूत कहे ये छः पद यहाँ संक्षेप में बताए हैं। समीपमुक्तिगामी जीव को सहज विचार में ये सप्रमाण होने योग्य हैं। परम निश्चयरूप प्रतीत होने योग्य हैं। उसका सर्व विभागोसें विस्तार होकर उसके आत्मामें विवेक होन योग्य हैं। ये छः पद अत्यंत संदेह रहित हैं, ऐसा परमपुरुष ने निरूपण किया है। इन छः पदों का विवेक जीव को स्वस्वरूप समझने के लिए कहा है।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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