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________________ साधना पथ काम देना चाहिए। मन रूपी भूत को ज्ञानी की आज्ञा रूपी बाँस पर चढ़ उतर कराएँ तो वश में रहे, उसे थका दो। कर्म के धक्के के समय 'यह मुझे योग्य है या अयोग्य' यह विचार नहीं रहता। बहुत उत्तम शिक्षा है। बिना परेशानी जीव नहीं रहता, समय समय कर्म बंध होता रहता है। मन को वांचन में, मनन में, मुखपाठ में, लिखने में व्यस्त रखना, काम हो तब तक मन ठीक रहे पर खाली मन पानी की तरह नीची दिशा में जाता है, इससे बहुत कर्म बंध होता है। मन को अच्छा न लगने वाला काम ही कराना है। जीव को अपनी पसंद के काम में अच्छा लगता है और बिन पसंद के काम में अस्वस्थ लगता है। .. मन को एकाग्र करना है। “आज्ञा में ही एकतान हुए बिना परमार्थ के मार्ग की प्राप्ति बहुत ही असुलभ है।" (श्री.रा.प-१४७) आज्ञा में रहने सिवा, मन को वश करने का दूसरा कोई रास्ता नहीं है। . पूर्व में कर्म बाँधे, वे भोगने पड़ते हैं। ऐसा का ऐसा तीव्र उदय हमेशा नहीं रहता। घबराहट थोड़े समय में जा सकती है, पर उस समय धीरज न रखे तो नए कर्म बंधे। इससे कर्म की स्थिति अधिक पड़ जाएँ। वह थोड़े समय में न मिटे। केवली भगवान ने जैसा देखा है, वैसा होनेवाला है, ऐसा मानकर कुछ भी विकल्प न करना। 'मन को मौन कर डालना।' अर्थात् मन कोई भी संकल्प-विकल्प न करें। मुँह से मात्र बोलना नहीं, इतना ही नहीं, पर मन काबू में रहे तब सच्चा मौन है। विकल्प रोकना वस्तुतः मौनत्व है। ___संसारी प्रसंगों में दूसरों के साथ मिल न जाना। आत्मा अकेला ही भला है। धर्म के नाम पर स्वार्थ सेवे तो धर्म से जीव दूर चला जाता है। सोभागभाई को जो जो आदतें थी, वे थोड़ी थोड़ी कर के छुड़वा दीं। इस पत्र में कही शिक्षा प्रत्येक को माननी चाहिए। जिस को सम्यक्त्व प्राप्त करना है, उन सब के काम की है। बोधज्ञान-सम्यक्ज्ञान पर लक्ष्य रख कर यह पत्र लिखा है।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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