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साधना पथ
सदा नम्र, नम्र और नम्र रहें, अहंकार न करें। अहंकार न करने से क्या गुण चले जाएँगे? “मैं कुछ नहीं जानता" यह सरल रास्ता है। अभिमान से कोई मोक्ष में नहीं गया, इसका विचार करें तो जागृति आएँ। मात्र एक ज्ञानी की शरण में जा तो जरुर मार्ग मिलेगा। “मैं कुछ नहीं जानता" ऐसा जब होगा तब सत्पुरुषार्थ स्फुरायमान होगा। तब तक सब कल्पना हैं। श्री.रा.प.-२१२
(१०४) बो.भा.-२ : पृ.-५१ ____ अज्ञान और अविरति कैसे टलें? ऐसा विचार बारम्बार रहे तो दोष टलते हैं। जगत की वासना में पड़े रहना है और लोगों में भक्त कहलवाना है। वासना छोड़ने की रुचि नहीं। इतने इतने वर्ष तक सत्संग करने पर भी दोष क्यों नहीं जाते? ऐसा जीव कह तो दे पर दोष निकाले नहीं। ‘लोक मूके पोक' मुझे तो ज्ञानी का कहा हुआ ही करना है, ऐसा दृढ़ करें। जीव लौकिक भाव में डूब रहा है। जब तक ममत्व भाव रहेगा तब तक जगत इसे खींचता रहेगा। ज्ञानी के वचन का परिणमन होवें इस पर सब आधार है। कड़वी गोली उतारनी पड़ेगी। ज्ञानी की आज्ञा में एकतान होना ही पड़ेगा इसके अलावा दूसरा कोई मार्ग नहीं है। अन्य सब छोड़ना पड़ेगा। यह मार्ग जीव को समझ में नहीं आया। अपनी इच्छा से वापिस मुड़ेगा तब कल्याण होगा। ___वैजनाथ ने कृपालदेव के पूर्वभव की बात बताई कि वे पूर्वकाल में उत्तर दिशा में विचरे थे। यह बात स्वीकार करने के साथ ही कृपालुदेवने कहा कि वैजनाथ को आत्म-साक्षात्कार न था। जिसे केवली का आश्रय है उसे चौथे गुणठाणे से केवली की श्रद्धा होती है। आश्रय मिले तो सब सम्यक् है। तीर्थंकर के, सत्पुरुष के वचन समझना बहुत दुर्लभ है। मतिमान बहुत हो वह भी थक जाए, पर सद्गुरु का अवलंबन मिला हो तो सुलभ हो जाए। आत्मा को पुद्गल से कुछ लेना-देना नहीं। आत्मा कुछ करती नहीं, आत्मा सिद्ध समान है। ‘कर विचार तो पाम'। विचार करते आगे पहूँचा हो, तो संशय भ्रान्ति टले। आत्मा होगा या नहीं, ऐसी शंका भी इसे न रहे।