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________________ मोक्षमार्ग की पूर्णता ध्रौव्यात्मक वस्तुव्यवस्था को लेकर आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजीस्वामी के विचार हम आगे दे रहे हैं - 94 " चारित्र की शुद्धता एकसाथ संपूर्ण प्रगट नहीं हो जाती; किन्तु क्रमशः प्रगट होती है। जबतक शुद्ध दशा अपूर्ण रहती है, तबतक साधकदशा कहलाती है। ७६. प्रश्न - शुद्धता कितनी प्रगट होती है ? उत्तर - पहले सम्यग्दर्शन- सम्यग्ज्ञान से जो आत्मस्वभाव प्रतीति में आया है, उस स्वभाव की महिमा के द्वारा वह जितने बलपूर्वक स्वद्रव्य में एकाग्रता करता है, उतनी ही शुद्धता प्रगट होती है। शुद्धता की प्रथम सीढ़ी शुद्धात्मा की प्रतीति अर्थात् सम्यग्दर्शन है। सम्यग्दर्शन के बाद पुरुषार्थ के द्वारा क्रमशः स्थिरता को बढ़ाकर अन्त में पूर्ण स्थिरता के द्वारा पूर्ण शुद्धता प्रगट करके मुक्त हो जाता है। सिद्धदशा में अक्षय अनन्त आत्मसुख का अनुभव करता है। मिथ्यात्व का त्याग करके सम्यग्दर्शन प्रगट करने का ही यह फल है । ७७. प्रश्न - द्रव्य त्रिकाल स्थिर रहनेवाला है, उसका कभी नाश नहीं होता और वह कभी भी दूसरे द्रव्यों में नहीं मिल जाता, इसका क्या आधार है ? ऐसा क्यों विश्वास किया जाय? हम देखते हैं कि दूध इत्यादि अनेक वस्तुओं का नाश हो जाता है; अथवा दूध (वस्तु) मिटकर दही (वस्तु) बन जाता है, तब फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य में नहीं मिलता ? उसका उत्तर - वस्तुस्वरूप का ऐसा सिद्धान्त है कि जो वस्तु है, कभी भी नाश नहीं होता, और जो वस्तु नहीं है, उसकी उत्पत्ति नहीं होती तथा जो वस्तु है उसमें रूपान्तर होता रहता है । अर्थात् स्थिर रहकर बदलना (Parmanency with a change) (और बदलकर भी स्थिर रहना) वस्तु का स्वरूप है ।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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