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________________ मोक्षमार्ग की पूर्णता सम्यक् मति-श्रुत ने केवलज्ञान का अनुसंधान किया है। कौन कह सकता है - मति-श्रुतज्ञान केवलज्ञान का अंश है? . जिसने पूर्ण ज्ञानस्वभाव को प्रतीति में लेकर उस स्वभाव के आधार से सम्यक् अंश प्रगट किया हो, वही पूर्णता के साथ संधि करके (पूर्णता के लक्ष से) कह सकता है कि जो यह मेरा ज्ञान है, वह केवलज्ञान का अंश है, केवलज्ञान का नमूना है। ___ जो राग में ही लीन रहता है, उसका ज्ञान तो राग का हो गया, उसको तो राग से भिन्न ज्ञानस्वभाव की खबर ही नहीं, तब यह ज्ञान इस स्वभाव का अंश है' - ऐसा वह किसतरह जानेगा? जब वह अपने ज्ञान को पर से व राग से पृथक् ही नहीं जानता, तब उसको स्वभाव का अंश कहने का अवसर रहा ही कहाँ? स्वभाव के साथ जो एकता करे, वही अपने ज्ञान को यह स्वभाव का अंश है' - ऐसा जान सकता है, राग के साथ एकतावाला यह बात (रहस्य-मर्म) नहीं समझ सकता।" १. अध्यात्मसंदेश, पृष्ठ-३६
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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