SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्षमार्ग की पूर्णता तथापि वहाँ सभी गुण पूर्ण निर्मल नहीं हुए हैं, अतः मिश्रधर्म है। बारहवें गुणस्थान तक यही दशा रहती है, इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वहाँ धर्म की पूर्णता नहीं है। सम्यग्दर्शन तो पूर्ण है, परन्तु. अन्य गुण पूर्ण निर्मल नहीं हुए हैं; अतः यहाँ मिश्रधर्म है। आत्मा में उत्पन्न विभावभावों को ज्ञानी अपने कारण से होना मानता है और अज्ञानी वे विभावभाव निमित्त से होते हैं - ऐसा मानकर स्वच्छन्दी होता है, इसकारण उसके मिथ्यात्व का नाश नहीं होता। विभावभाव आत्मा में अपने कारण से उत्पन्न होते हैं - ऐसा मानकर कोई विभावभाव को ही अपना माने तो वह भी मिथ्यादृष्टि है। . विभावभाव पर्याय में अपने कारण से होते हैं, कर्म के कारण नहीं, परन्तु वह मेरा स्वभाव नहीं है - ऐसा मानते हुए ज्ञानी उनके नाश का पुरुषार्थ करता है। पाण्डे राजमल्लजी कृत समयसार कलश टीका में कहा है कि - “जो जीव आत्मा में रागादिभाव कर्म के कारण उत्पन्न होते हैं - ऐसा मानता है, वह मिथ्यादृष्टि है, अनन्त संसारी है।" ___ क्षायिक सम्यग्दृष्टि के भी रागादि परिणति चारित्र मोहनीय कर्म की प्रबलता के कारण नहीं है तथा चारित्र पूर्ण नहीं है; अतः सम्यक्त्व गुण में कोई कमी है - ऐसा भी नहीं। चेतन-अचेतन की भिन्न प्रतीति से सम्यक्त्वगुण स्वयं निज जातिरूप होकर परिणमा है अर्थात् मैं ज्ञायकमूर्ति चेतन आत्मा हूँ, मैं अचेतन नहीं- इसप्रकार ज्ञान स्वयं अपनी जातिरूप होकर परिणमा है। १. ज्ञानधारा-कर्मधारा, पृष्ठ - ७६ से ७९
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy