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________________ 212 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यक्चारित्र ३४. यह (शुभोपयोग बन्ध का कारण होने से) उत्तम नहीं है, क्योंकि जो उपकार व अपकार करनेवाला नहीं है, ऐसा साम्य या __शुद्धोपयोग ही उत्तम है। (पंचाध्यायी उत्तरार्द्ध श्लोक-७६१, पृष्ठ-४६६) ३५. बुद्धि की मन्दता से यह भी आशंका नहीं करनी चाहिए कि शुभोपयोग एक देश से निर्जरा का कारण हो सकता है; कारण कि निश्चयनय से शुभोपयोग भी संसार का कारण होने से निर्जरादिक का हेतु नहीं हो सकता है। (पंचाध्यायी उत्तरार्द्ध श्लोक-७६३, पृष्ठ-४६७) ३६. जो रागादि से भेद विज्ञान हो जानेपर रागादि का त्याग करता है, उसे भेद विज्ञान का फल है। (द्रव्यसंग्रह, गाथा-३६, पृष्ठ-१७४) सम्यक्चारित्र, भेद-प्रभेद • सामान्यपने एक प्रकार चारित्र है अर्थात् चारित्रमोह के उपशम क्षय व क्षयोपशम से होनेवाली आत्म-विशुद्धि की दृष्टि से चारित्र एक है। • बाह्य व अभ्यन्तर निवृत्ति अथवा व्यवहार व निश्चय की अपेक्षा चारित्र दो प्रकार का है। • प्राणीसंयम व इन्द्रियसंयम की अपेक्षा चारित्र दो प्रकार का है। • औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक के भेद से चारित्र तीन प्रकार का है। • उत्कृष्ट, मध्यम व जघन्य विशुद्धि के भेद से चारित्र तीन प्रकार का है। चार प्रकार के यति की दृष्टि से या चातुर्याम की अपेक्षा चारित्र चार प्रकार का है। • स्वरूपाचरण चारित्र, देशचारित्र, सकलचारित्र, यथाख्यात चारित्र।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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