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________________ 210 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यक्चारित्र २३. जो मुनि चारित्र से पूर्ण है, वह थोड़ा भी पढ़ा हुआ हो तो भी दशपूर्व के पाठी को जीत लेता है। (अर्थात् वह तो मुक्ति प्राप्त कर लेता है, और संयमहीन दशपूर्व का पाठी संसार में ही भटकता है) जो चारित्ररहित है, वह बहुत से शास्त्रों का जाननेवाला हो जाये तो भी उसके बहुत शास्त्र पढ़े होने से क्या लाभ? नेत्र और उससे होनेवाला जो ज्ञान उसका फल सर्पदंश, कंटकव्यथा इत्यादि दुःखों का परिहार करना है; परन्तु जो बिल .. आदिक देखकर भी उसमें गिरता है, उसका नेत्रज्ञान वृथा है। __(मूलाचार, गाथा-८९७) २४. आत्मा का स्वरूप उपाध्याय आदि के मुख से खूब इच्छानुसार सुनने पर भी तथा अपने मुख से दूसरों को बतलाते हुए भी जबतक आत्मस्वरूप की शरीरादि पर पदार्थों से भिन्न भावना नहीं की जाती, तबतक यह जीव मोक्ष का अधिकारी नहीं हो सकता। (समाधिशतक, श्लोक-८१) २५. हिंसादि पाँच अव्रतों से पाँच पाप का और अहिंसादि पाँच व्रतों से पुण्य का बन्ध होता है। पुण्य और पाप दोनों कर्मों का विनाश मोक्ष है। इसलिए मोक्ष के इच्छुक भव्य पुरुष को चाहिए कि अव्रतों की तरह व्रतों को भी छोड़ दे। (समाधिशतक, श्लोक-८३) २६. निश्चय चारित्र से मोक्ष होता है और व्यवहार चारित्र से बन्ध। इसलिए मोक्ष के इच्छुक को मन, वचन, काय से व्यवहार छोड़ना चाहिए। (बृहद् नयचक्र, गाथा-३८१, पृष्ठ-१९३) २७. शास्त्रों को खूब जानता हो और तपस्या करता हो, लेकिन परमात्मा को जो नहीं जानता या उसका अनुभव नहीं करता, तबतक वह संसार से नहीं छूटता। . (परमात्मप्रकाश अधिकार-२, श्लोक-८१)
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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