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________________ 18 मोक्षमार्ग की पूर्णता गुण का स्वरूप आचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र (अध्याय-५, सूत्र-४१) में गुण का लक्षण इस प्रकार दिया है - 'द्रव्याश्रयाः निर्गुणा गुणाः' - जो द्रव्य के आश्रय से सदा रहते हैं और स्वयं अन्य गुणों से रहित हैं, वे गुण हैं। __जैन सिद्धान्त प्रवेशिका में गुण की सरल-सुबोध परिभाषा देते हुए पण्डित गोपालदासजी बरैया ने लिखा है - 'जो द्रव्य के सम्पूर्ण भागों में तथा उसकी सम्पूर्ण अवस्थाओं में रहते हैं, उन्हें गुण कहते हैं।' जिसप्रकार मूल द्रव्य कभी भी अशुद्ध नहीं होता, उसीप्रकार जिन गुणों का समूहरूप द्रव्य है - वे गुण भी कभी अशुद्ध नहीं होते अर्थात् गुण नियमपूर्वक स्वभाव से शुद्ध ही होते हैं; क्योंकि वे स्वतः सिद्ध एवं निरपेक्ष होते हैं। गुण के सामान्य गुण व विशेष गुण – ऐसे दो भेद तो हैं; किन्तु विभाव गुण व स्वभाव गुण अथवा शुद्ध गुण व अशुद्ध गुण ऐसे भेद नहीं हैं। द्रव्य की तरह गुण भी अनादि-अनंत, अकृत्रिम एवं स्वयंभू तथा शुद्ध ही हैं। यद्यपि द्रव्य का लक्षण बताने के लिए विशिष्ट असाधारण गुण का आधार लिया जाता है; तथापि ध्यान का विषय कोई एक गुण अथवा कोई विशिष्ट गुण न होकर अनन्त गुणों के समूहरूप शुद्ध जीव द्रव्य ही होता है। गुणों के द्वारा द्रव्य की ऐसी महिमा की जाती है, जिससे ध्यान का प्रयोजन सहजरूप से ही सिद्ध होता है। ___पंचास्तिकाय संग्रह, गाथा १३ में द्रव्य एवं गुणों का सम्बन्ध आचार्य श्री कुन्दकुन्द ने सर्वांगरूप से इसप्रकार कहा है - “दव्वेण विणा ण गुणा, गुणेहिंदव्वं विणाणसंभवदि। अव्दिश्तिो भावो दव्वगुणाणं हवदि तम्हा॥ अर्थात् द्रव्य बिना, गुण नहीं होते और गुण के बिना, द्रव्य नहीं
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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