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________________ 161 सम्यग्दर्शन की परिभाषाएँ १५. अभेद नय से जो सम्यग्ज्ञान है, वही सम्यग्दर्शन है। (द्रव्यसंग्रह गाथा ५२ की टीका पृष्ठ-२१८,१०) १६. 'शुद्धात्मा ही उपादेय है' ऐसीरुचि होनेरूप सम्यग्दर्शन है और . उसी शुद्धात्माको रागादिपरभावों से भिन्न जाननासम्यग्ज्ञान है। (द्रव्यसंग्रह गाथा ५२ की टीका पृष्ठ-२१८,१०) १७. शुद्धोपयोग रूप निश्चय रत्नत्रय की भावना से उत्पन्न परम आहादरूप सुखामृत रस का आस्वादन ही उपादेय है, इन्द्रियजन्य सुख आदिक हेय है, ऐसी रुचि तथा जो वीतराग चारित्र के बिना नहीं होता, ऐसा जो वीतराग सम्यक्त्व, वह ही निश्चय सम्यक्त्व है। (द्रव्यसंग्रह, गाथा-४१ की टीका, पृष्ठ-२०३) १८. रागादि विकल्प रहित, चित् चमत्कार भावना से उत्पन्न, मधुर रस के आस्वादरूप सुख का धारक मैं हूँ। इसप्रकार निश्चयरूप सम्यग्दर्शन है। (द्रव्यसंग्रह, गाथा-४० की टीका, पृष्ठ-१८६) १९. 'शुद्धात्मा ही उपादेय है', ऐसा श्रद्धान सम्यक्त्व है। ___ (द्रव्यसंग्रह, गाथा-१४,४२,४) २०. जो द्रव्यों को जैसा उनका स्वरूप हैं, वैसा जाने और उसी तरह इस जगत् में श्रद्धान करे, वही आत्मा का चल, मलिन-अवगाढ़ दोष रहित निश्चल भाव है; वही आत्मभाव सम्यग्दर्शन है। (परमात्मप्रकाश, अध्याय-२, गाथा-१५) २१. त्रिगुप्ति अवस्था ही वीतराग सम्यक्त्व का लक्षण है। (द्रव्यसंग्रह गाथा ४१ की टीका) २२. अतत्व में तत्त्व की बुद्धि, अदेव में देव की बुद्धि और अधर्म में धर्म की बुद्धि, इत्यादिरूप जो विपरीत अभिनिवेश है; उस विपरीताभिनिवेश से रहित जो ज्ञान है, उसके 'सम्यक् विशेषण से कहे जानेवाली अवस्थाविशेष सम्यक्त्व कहलाता है। (द्रव्यसंग्रह गाथा ५२ की टीका, पृष्ठ-२१८, १०)
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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