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________________ तृतीय खण्ड रत्नत्रय की आगमोक्त परिभाषाएँ आदि मोक्षमार्ग के स्वरूप की ही विशेष स्पष्टता के लिए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र के लक्षण व स्वरूप के सन्दर्भ में आगम में जो विभिन्न कथन है; उन्हें संकलित कर यहाँ देने का हम प्रयास कर रहे हैं। यह संकलन का कार्य श्री सौरभजी शास्त्री गढ़ाकोटा ने किया है। हमें विश्वास है कि इस संकलन के अध्ययन से पाठकों को मोक्षमार्ग की पूर्णता का विषय स्पष्ट समझ में आ सकेगा और यथार्थ ज्ञान का वर्धन होने से विशेष आनन्द भी प्राप्त होगा। सम्यग्दर्शन सम्यग्दर्शन की विभिन्न परिभाषाएँ १. शुद्ध जीवास्तिकाय से उत्पन्न होनेवाला जो परमश्रद्धान, वही दर्शन है। (नियमसार गाथा-१३, तात्पर्यवृत्ति टीका) २. कारणदृष्टि परमपारिणामिकभावरूप जिसका स्वभाव हैं, ऐसे कारणसमयसारस्वरूप आत्मा के यथार्थ स्वरूपश्रद्धानमात्र है। __ (नियमसार गाथा-१३, तात्पर्यवृत्ति टीका) ३. आप्त आगम और तत्त्वों की श्रद्धा से सम्यक्त्व होता है। इनका ___ सम्यक् श्रद्धान व्यवहार सम्यक्त्व है। (नियमसार, गाथा-५) ४. तत्त्वरुचि सम्यग्दर्शन है। (मोक्षपाहुइ, गाथा-३८) ५. ज्ञेय और ज्ञाता इन दोनों की यथारूप प्रतीति सम्यग्दर्शन का लक्षण है। (प्रवचनसार, गाथा-२४२, तत्त्वप्रदीपिका टीका, पृष्ठ-४७४)
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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