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द्वितीय खण्ड
रत्नत्रय के सम्बन्ध में आध्यात्मिक सत्पुरुष
श्री कानजीस्वामी के अनमोल वचन. मोक्षमार्ग के स्वरूप की ही विशेष स्पष्टता के लिए आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजीस्वामी के सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र के संबंध में विशिष्ठ प्रेरणास्पद चिंतन/उद्गार हम आगे दे रहे हैं, जो ज्ञानगोष्ठी नामक पुस्तक से संकलित है।
ज्ञानगोष्ठी के संपादन का कार्य डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल एवं पण्डित अभयकुमारजी शास्त्री ने किया है।
हमें विश्वास है कि इससे पाठकों को मोक्षमार्ग की पूर्णता का विषय स्पष्ट समझ में आ सकेगा और यथार्थ ज्ञान का वर्धन होने से विशेष आनन्द भी मिलेगा।
सम्यग्दर्शन १. प्रश्न - सम्यक्त्व का आत्मभूत लक्षण क्या है?
उत्तर - स्व-पर का यथार्थ भेदज्ञान सदा सम्यक्त्व के साथ ही होता है तथा यह दोनों पर्यायें एक ही स्व-द्रव्य के आश्रय से होती हैं, इसलिए भेदविज्ञान सम्यक्त्व का आत्मभूत लक्षण है।
गुण-भेद की अपेक्षा से सम्यक्त्व का आत्मभूत लक्षण निर्विकल्प प्रतीति है और सम्यक्त्व का अनात्मभूत लक्षण भेदविज्ञान है - ऐसा भी कहा जाता है।
किन्तु निर्विकल्प अनुभूति को सम्यक्त्व का लक्षण नहीं कहा, क्योंकि वह सदा टिकी नहीं रहती।