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क्रमके ग्रहण किया जा सकता है। सभी व्रत अपनी अपनी मर्यादामें उत्कृष्ट है। परंतु नौवे सामायिक व्रत को सबसे महान माना गया है। क्योकि सामायिक ही मुक्ति का प्रधान साधन है , पंचम गुणस्थान से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक एकमात्र सामायिक व्रत की ही साधना की जाती है और सामायिक पूर्णत्व से जीवन मे उतर जाना ही मुक्ति है, मोक्ष है। यही कारण है कि, प्रत्येक मुनि तथा तीर्थकर दीक्षा लेने के समय कहते है कि, मैं जीवनभर के लिए सामायिक ग्रहण करता हूँ और केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद प्रत्येक तीर्थकर सर्वप्रथम जनता को इसी व्रत का उपदेश देते हैं । ऐसे महान व्रत की महत्ता सूत्रोंमें वर्णन करते हुए कहा गया है,
"तिब्बतवं तवमाणोजन वि निवइ जन्मकोडिहिं। तसमभवियचितो खवेइ कम्म खणद्धणं ॥११६||.
संबोध प्रकरण अर्थात - करोडो जन्मों तक निरंतर उग्र तप करनेवाला साधक जिन कर्मो को नष्ट नही कर सकता उनको समभावपूर्वक सामायिक करनेवाला साधक मात्र आधेही क्षण में नष्ट कर डालता है। "जे के विगया मोक्खं, जे विय गच्छन्ति, जेगमिस्सन्ति। ... तेसवे सामाइय महाप्पेणं मुणेयध्वं ॥११७॥
___संबोध प्रकरण अर्थात - जो भी साधक अतीत काल में मोक्ष प्राप्त कर गए हैं, वर्तमानमे जा रहे हैं, और भविष्यमे जाएंगे यह सब सामायिक का प्रभाव है।
सचमुच सामायिक मनुष्य की आध्यात्मिक प्रगति के लिए,