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आदेशः
४८१]
निरनुबन्धः सूत्राङ्कः धात्वङ्कः गणः पत्राङ्क: | पदम् | अर्थः भ्रंश् १७७
४६५ आत्मने| [अक.] फूटना, नष्ट होना। परस्मै | [अक.] विकसना, प्रकट होना ।
[सक.] भ्रमण करना। परस्मै | [सक.] भ्रमण करना । ४५०
[सक.] शुद्ध करना, पोंछना।
अकारादिवर्णक्रमेण चतुर्थपादान्तर्गता धात्वादेशाः
फुस
बज्झ
बीह
सानुबन्धः भ्रशूङ् अवस्रेसने स्फुट्ट विशरणे भ्रमू चलने भ्रमू चलने मृजौक् शुद्धौ बन्धश् बन्धने जिभीक् भये गर्ज गर्जने (शब्दे) बुधि ज्ञाने टुमस्नोत् शुद्धौ कथण वाक्यप्रबन्धे भण शब्दे भ्रमू चलने भ्रमू चलने
४४०
उभय | [अक.] डरना ।
बुक्क
४४९
परस्मै | [अक.] गरजना ।
४७५
༉ ཟླ ཟ ༔ ཟླ ཟླ་ཟླ བྷྱཱ ཙྪཱ བྷཱུ བྷྱཱ ཙྪཱ བྷྱཱ ཡྻོ ཧྥ #
४४९
आत्मने | [सक.] जानना, जागना । परस्मै | [सक.] डूबना। परस्मै | [सक.] कहना । परस्मै | [सक.] कहना, प्रतिपादन करना ।
बोल्ल
४२७/
भण्ण
४९४॥
भमड
परस्मै | [सक.] भ्रमण करना ।
भम्मड
४६१|
[सक.] भ्रमण करना। परस्मै | [सक.] भ्रमण करना ।
भमाड
भ्रमू चलने
४६१
परस्मै | [सक.] भ्रमण करना ।
vx
[ सक.] स्मरण करना।
भमाड भ्रमूच् अनवस्थाने भर स्मूं चिन्तायाम् भल स्मं चिन्तायाम्
बिभीक् भये भिन्दभिदंपी विदारणे
परस्मै | [सक.] स्मरण करना ।
[अक.] डरना। | [सक.] भेदना,तोडना ।
४७४॥
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