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नीरज
नील
आदेशः
सानुबन्धः भञ्जॉप आमदने
सं गतौ नूम छदण् संवरणे पउल डुपचींष् पाके पक्खोड विकोश नामधातुः पक्खोड शलं शातने पङ्ग ग्रहीश् उपादाने पच्चड
क्षर सञ्चलने पच्चड्ड
गम्लं गतौ पच्चार डुलभिष् प्राप्तौ
गम्लं गतौ
निरनुबन्धः सूत्राङ्कः धात्वङ्कः गणः पत्राङ्कः | पदम् | अर्थः भञ्ज |१०६ १४८६ । ४५१] परस्मै | [सक.] भागना । निस
[अक.] बाहर निकलना । छादय्
[ सक.] ढकना, छिपाना ।
[सक.] पकाना। वि+कोशय ४२
[सक.] खोलना, फैलाना। आत्मने | [ सक.] कंपाना, झाड कर गिराना ।
[सक.] ग्रहण करना।
| [अक.] झरना, टपकना।
४६२/ परस्मै | [सक.] गमन करना । उप+आ+लम् | १५६
[सक.] उपालम्भ देना, उलाहना देना । ४६२/ परस्मै | [सक.] गमन करना ।
परस्मै | [सक.] कहना, बोलना ।
अकारादिवर्णक्रमेण चतुर्थपादान्तर्गता धात्वादेशाः
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कथण वाक्यप्रबन्धे
पज्जर
शु
पज्झर
[अक.] झरना, टपकना ।
क्षर सञ्चलने पां पाने
पट्ट
पा
पट्टव
प्र+स्थापय् ३७
पड
पत्
२१९
पडिअग्ग
ष्वं गतिनिवृत्ती पत्लु गतौ व्रज गतौ शमू उपशमे नशौच अदर्शने क्षुभश् सञ्चलने
[सक.] पीना, पान करना । ४३७/ परस्मै | [अक.] प्रस्थान कराना, प्रारम्भ करना, प्रायश्चित्त देना, प्रकर्ष से स्थापना करना।
[अक.] पडना, गिरना। [सक.] अनुसरण करना, पीछे जाना ।
[अक.] शान्त होना। परस्मै | [अक.] भागना, पलायन होना । परस्मै | [अक.] क्षुब्ध होना ।
पडिसा
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