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आदेशः
४८१]
अकारादिवर्णक्रमेण चतुर्थपादान्तर्गता धात्वादेशाः
तोड
सानुबन्धः तुडत् तोडने त्रुटत् छेदने जित्वरिष् सम्भ्रमे अित्वरिष् सम्भ्रमे दीपैचि दीप्तौ तुडत् तोडने छं गतिनिवृत्ती फक्क नीचैर्गतौ तपौच प्रीती गल अदने ष्टुंग्क् स्तुती ष्टुंगा स्तुतौ दृशं प्रेक्षणे दृशं प्रेक्षणे
थक्क
थक्क
थिप्प
तृप्
थिप्प
निरनुबन्धः| सूत्राङ्कः धात्वः |गणः पत्राङ्कः | पदम् | अर्थः
४५श परस्मै | [अक.] खण्डित होना ।
परस्मै | [अक.] छिन्न होना । ४६४| आत्मने [अक.] शीघ्र होना।
४६४] आत्मने | [अक.] शीघ्र होना । प्र+दीप
४६० आत्मने [अक.] दीपना, जलना ।
४५२] [सक.] तोडना । [अक.] टूटना । स्था
४३२] परस्मै | [अक.] रहना, बैठना । फक्क्
[अक.] नीचे जाना।
[अक.] तृप्त होना। वि+गल्
[अक.] गल जाना। ४८९|
[सक.] स्तुति करना।
१०॥ [सक.] स्तुति करना। दर्शय
४३६] परस्मै | [सक.] दिखलाना। ४३६] [सक.] दिखलाना।
[सक.] दिखलाना। गुप्-जुगुप्स
आत्मने | [ सक.] घृणा करना, निन्दा करना । गुप्-जुगुप्स
आत्मने | [सक.] घृणा करना, निन्दा करना । दुह् २४५
४९२|| उभय | [सक.] दूध निकालना । धवलय
४३४॥ परस्मै | [सक.] सफेद करना। ४५४ उभय | [सक.] खण्डित करना ।
थण
स्त
दंस
दक्खव
दाव
दृशं प्रेक्षणे
य
४२८
दुगुञ्छ
४२८
गुपि गोपन-कुत्सनयोः गुपि गोपन-कुत्सनयोः दुहीक क्षरणे धवल नामधातुः छिदंपी द्वैधीकरणे
दहाव
४००