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७६६
जिव्य
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जीह
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जप्प
४५१
जर
४५६
आदेशः
सानुबन्धः जि अभिभवे जीर
जष्च् जरसि
ओलस्जति वीडे जुज्ज
युजंपी योगे
युधिंच् सम्प्रहारे जुञ्ज युजंपी योगे
युजंपी योगे खिचि दैन्ये कुचंच् कोपे
वञ्चिण प्रलम्भने जेमभुजंप् पालना-ऽभ्यवहारयोः
तपिच् ऐश्वर्ये लप व्यक्ते वचने
श्वसन प्राणने झल डुलभिष् प्राप्ती झड शलं शातने झण्ट भ्रमू चलने
भ्रमू चलने स्म चिन्तायाम् क्षर सञ्चलने
४४८
निरनुबन्धः निरनुबन्धः| सूत्राः धात्वङ्कः गणः पत्राङ्कः | पदम् | अर्थः
पदम् | अर्थः ४९० परस्मै [सक.] जीतना।
परस्मै | [अक.] जीर्ण होना, बूढा होना । आत्मने [अक.] शरमाना ।
[सक.] जोडना, युक्त करना। ४७५] आत्मने| [अक.] लडाई करना।
[सक.] जोडना, युक्त करना।
| [सक.] जोडना, युक्त करना। ४५६ आत्मने | [अक.] खेद करना ।
[अक.] क्रोध करना। आत्मने | [सक.] ठगना ।
[सक.] भोजन करना। सम्+तप्
[अक.] संताप करना।
४५९/ परस्मै | [अक.] विलाप करना । नि+श्वस्
[अक.] निःश्वास लेना। उप+आ+लम् | १५६
४६० आत्मने [सक.] उपालभ्भ देना।
परस्मै |[अक.] पके फल आदि का गिरना । [सक.] झपट मारना । ४६१) परस्मै | [सक.] घूमना, फिरना । ४६१/ परस्मै | [सक.] घूमना, फिरना ।
| [सक.] याद करना। परस्मै | [अक.] झरना, गिरना ।
भुज्
४५१]
४९७]
वि+लप्
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४५५
अकारादिवर्णक्रमेण चतुर्थपादान्तर्गता धात्वादेशाः
झम्प