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क्वर्थ
कथ
स्वप
अकारादिवर्णक्रमेण चतुर्थपादान्तर्गता धात्वादेशाः
भज
आदेशः
सानुबन्धः निरनुबन्धः| सूत्राङ्कः धात्वङ्कः |गणः पत्राङ्कः | पदम् | अर्थः कड्ढ कृषत् विलेखने
[सक.] चास करना, पढना, उच्चारण करना। कढ क्वथे निष्पाके
४७६/ परस्मै | [सक.] क्वाथ करना, उबालना । कत्थकथण वाक्यप्रबन्थे
[सक.] कहा जाता है। अिष्वपंक् शये
[अक.] सोना । कम्म डुकंग करणे
[सक.] क्षौर कर्म करना । कम्म भुजंप पालना-ऽभ्यवहारयोः
[सक.] भोजन करना । कम्मव भुजंप पालना-ऽभ्यवहारयोः उप+भुज् | १११
परस्मै | [सक.] उपभोग करना । करञ्ज भञ्जोंप आमदने भञ्ज्
[सक.] तोडना, टुकडा करना । डुकंग करणे
[सक.] काहीई = किया,काऊण = करके । किण डुक्रींग्श् द्रव्यविनिमये
उभय | [सक.] खरीदना । किलिकिञ्च रमि क्रीडायाम्
आत्मने | [अक.] क्रीडा करना । डुकंग् करणे
उभय | [संक.] करा जाता है। कुधंच कोपे
[सक.] क्रोध करना। डुकंग करणे
|[सक.] करना, बनाना । कुप्प कुपच् कोपे
[सक.] कोप करना। केलाय रचण् प्रतियत्ने
| [सक.] साफ कर ठीक करना । कोआस कस गतौ वि+कस् |
परस्मै | [अक.] विकसना, खीलना । कोक्क हंग् हरणे वि+आ+ह ७६
उभय | [सक.] आपन करना । रमि क्रीडायाम् रम् १६८
आत्मने [अक.] क्रीडा करना । खउर क्षभश सञ्चलने
परस्मै |[अक.] क्षुब्ध होना । [ सक.] कलुषित करना। १. पा० म०-कत्थि श्लाघायाम् (७१९) कत्थ्+अ+ते = कत्थइ । कथण वाक्यप्रबन्धे (१८८०) कथ+क्य+ते = कत्थइ।
कज्झ
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