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निरनुबन्धः सूत्राधात्वक गणः पत्राः | उद्+लस्
४७१|| पुञ्जय
४५०
आरोल
आदेशः
सानुबन्धः आरोअ लस श्लेषण-क्रीडनयोः
पुञ्ज नामधातुः आलिह स्पृशंत् संस्पर्श आलुख स्पृशंत् संस्पर्श आलुख दहं भस्मीकरणे
स्पृश्
६६
पदम् | अर्थः परस्मै [[अक.] विकसित होना, उल्लास पाना । परस्मै | [सक.] इकट्ठा करना । परस्मै | [सक.] स्पर्श करना। परस्मै | [सक.] स्पर्श करना । परस्मै | [सक.] जलाना, दाह देना ।
[सक.] संभावना करना, निश्चय करना।
दह
२०
४७२
. . . .
आसंघ
भू सत्तायाम्
सम्+भू |३५
४३६|
काक्ष
४६९|
परस्मै | [सक.] चाहना, इच्छा करना ।
ताडय्
४३४
परस्मै | [सक.] ताडना करना ।
४७४ा
परस्मै | [सक.] इच्छा करना, चाहना।
४३२॥
KE
परस्मै | [सक.] उठना ।
. . . . .
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६२॥
आह काक्षु काङ्क्षायाम् आहोड तडण् आघाते इच्छइषत् इच्छायाम् उक्कुक्कुर छं गतिनिवृत्ती उक्कुस गम्लं गतौ उक्खुड तुडत् तोडने उम्ग घटिष् चेष्टायाम्
रचण् प्रतियत्ने उग्घुस मृजौक् शुद्धौ
द्रांक कुत्सितगतौ
छं गतिनिवृत्ती उत्थच णमं प्रह्मत्वे उत्थव क्षिपीत् प्रेरणे उत्थय रुपी आवरणे
उद्घाटय
उपगह
४८
मृज्
परस्मै | [सक.] गमन करना। परस्मै | [सक.] तोडना, टुकडा करना । आत्मने | [सक.] खोलना । परस्मै | [सक.] रचना, निर्माण करना । परस्मै | [सक.] मार्जन करना । परस्मै | [सक.] नींद लेना ।
[सक.] खडा होना।
| [ सक.] ऊंचा करना। उभय | [सक.] ऊंचा फेंकना ।
| [सक.] रोकना।
उङ्व
नि+द्रा
. . . .
अकारादिवर्णक्रमेण चतुर्थपादान्तर्गता धात्वादेशाः
उत्+स्था
उद्+नमय | ३६
४५८
उत्+क्षिप् रुध्
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