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प्राकृतव्याकरणस्य मूलसूत्राणि
ष्क-स्कयो म्नि ॥ १४ ॥
दग्ध-विदग्ध-वृद्धि-वृद्धे ढः ॥ २।४० ॥ शुष्क-स्कन्दे वा ॥ २५ ॥
श्रद्धद्धि - मूर्धा-ऽर्धेऽन्ते वा ॥ २२४१ ॥ श्वेटकाऽऽदौ ॥ २६ ॥
म्न-ज्ञोर्णः ॥ २।४२ ॥ स्थाणावहरे ॥ २७ ॥
पञ्चाशत्-पञ्चदश-दत्ते ॥ २।४३ ॥ स्तम्भे स्तो वा ॥ २२ ॥
मन्यौ न्तो वा ॥ २।४४ ॥ थ-ठावस्पन्दे ॥ २९ ॥
स्तस्य थोऽसमस्त-स्तम्बे ॥ २।४५ ॥ रक्ते गो वा ॥ २॥१०॥
स्तवे वा ॥ २।४६ ॥ शुल्के ङ्गो वा ॥ २॥११ ॥
पर्यस्ते थ-टौ ॥ २२४७ ॥ कृत्ति-चत्वरे चः ॥ २१२ ॥
वोत्साहे थो हश्च रः ॥ २।४८ ॥ त्योऽचैत्ये ॥ २॥१३॥
आश्लिष्टे ल-धौ ॥ २४९ ॥ प्रत्यूषे षश्च हो वा ॥ २।१४ ॥
चिह्ने न्धो वा ॥ २५० ॥ त्व-थ्व-द्व-ध्वां च-छ-ज-झाः क्वचित् ॥ २॥१५ ॥ भस्मा-ऽऽत्मनोः पो वा ॥ २२५१ ॥ वृश्चिके श्चेझुर्वा ॥ २०१६ ॥
ड्म-क्मोः ॥ २॥५२ ॥ छोऽक्ष्यादौ ॥ २१७ ॥
ष्प-स्पयोः फः ॥ २५३ ॥ क्षमायां कौ ॥ २०१८ ॥
भीष्मे ष्मः ॥ २५४ ॥ ऋक्षे वा ॥ २।१९ ॥
श्लेष्मणि वा ॥ २१५५ ॥ क्षण उत्सवे ॥ २२० ॥
ताम्रा-ऽऽने म्बः ।। २।५६ ॥ हुस्वात् थ्य-श्च-त्स-प्सामनिश्चले ॥ २।२१ ॥
ह्वो भो वा ॥ २१५७ ॥ सामोत्सुकोत्सवे वा ॥ २२ ॥
वा विह्वले वौ वश्च ॥ २२५८ ॥ स्पृहायाम् ॥ २।२३ ॥
वोघे ॥ २।५९ ॥ द्य-य्य-यां जः ॥ २।२४ ॥
कश्मीरे म्भो वा ॥ २६० ॥ अभिमन्यौ ज-औ वा ॥ २२२५ ॥
न्मो मः ॥ २२६१ ॥ साध्वस-ध्य-ह्यां झः ॥ २।२६ ॥
ग्मो वा ॥ २।६२ ॥ ध्वजे वा ॥ २१२७ ॥
ब्रह्मचर्य-तूर्य-सौन्दर्य-शौण्डीर्ये र्यो रः ॥ श६३ ॥ इन्धौ झा ॥ २।२८ ॥
धैर्य वा ॥ २१६४ ॥ वृत्त-प्रवृत्त-मृत्तिका-पत्तन-कथिते टः ॥ २।२९ ॥ एत: पर्यन्ते ॥ २।६५ ॥ तस्याऽधूर्तादौ ॥ २॥३०॥
आश्चर्ये ॥ श६६ ॥ वृन्ते ण्टः ॥ २॥३१ ॥
अतो रिआ-ऽर-रिज्ज-रीअं । २०६७ ॥ ठोऽस्थि - विसंस्थुले ॥ २॥३२ ॥
पर्यस्त-पर्याण-सौकुमार्ये ल्लः ॥ २१६८ ॥ स्त्यान - चतुर्था-ऽर्थे वा ॥ २॥३३ ॥
बृहस्पति - वनस्पत्योः सो वा ॥ २१६९ ॥ ष्टस्याऽनुष्ट्रष्टासंदष्टे ॥ २३४ ॥
बाष्पे होऽश्रुणि ॥ २१७० ॥ गर्ते डः ॥ २॥३५ ॥
कार्षापणे ॥ २७१ ॥ संमर्द-वितदि-विच्छर्द-च्छदि-कपर्द-मर्दिते र्दस्य ॥ २॥३६ ॥ दुःख-दक्षिण-तीर्थे वा ॥ २१७२ ॥ गर्दभे वा ॥ २॥३७ ॥
कूष्माण्ड्यां ष्मो लस्तु ण्डो वा ॥ २७३ ॥ कन्दरिका-भिन्दिपाले ण्डः ॥ २॥३८ ॥
पक्ष्म-श्म-ष्म-स्म-मां म्हः ॥ २७४ ॥ स्तब्धे ठ-ढौ ॥ १३९ ॥
सूक्ष्म-श्न-ष्ण-स्न-न-ह्ण-क्षणां ग्रहः ॥ २७५ ॥