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________________ यजामहे - (१) वयं यजमान ऋत्विजो हविर्भिः पूजयामहे । 'त्रिपुरातापिन्युपनिषत् ' के मतानुसार अथ कस्मादुच्यते यजामह इति । यजामहे सेवामहे वस्तुमहेत्यक्षरद्वयेन कूटत्वेनाक्षरैकेन मृत्युञ्जयमित्युच्यते तस्मादुच्यते यजामह इति । यजामहे का अर्थ हम आपके सेवा करते है अथवा स्तुति करते हैं। किसकी स्तुति करते है ? त्र्यं, ब ये दो अक्षरो के साथ 'क' यह तिसरे कूट- गूढ अर्थवाले को मानकर मृत्युञ्जय की स्तुति करते हैं। सुगन्धिम् - सायण तैत्तिरीय भाष्य में सुगन्धि का अर्थ पुण्यकर्म की सुगन्धवाले ऐसा करते हैं। ऋग्वेद ५-१९-२४ में सांभरी काण्वने भी सुगन्धि शब्द का प्रयोग किया है । वहाँ सायण 'शोभनगन्धयुक्तेन' ऐसा अर्थ देते हैं। 1 सायण 'त्र्यम्बक' मंत्र में 'सुगन्धि' का भाष्य करते हुए लिखते हैं शोभनः शरीरगन्धः पुण्यगन्धो वा यस्यायौ सुगन्धि । I यथा वृक्षस्य संपुष्पितस्य दूराद्गन्धो वात्येवं पुण्यस्य कर्मणो दूराद्गन्धो वाति । (तैत्तिरीय आरण्यक २० - ९) इति श्रुते: 'त्रिपुरातापिन्युपनिषद्' के अनुसार अथ कस्मादुच्यते सुगन्धिमिति । सर्वतो यश आप्नोति तस्मादुच्यते सुगन्धिमिति । भगवान् शिव अष्टमूर्ति के रुप में सर्वत्र व्याप्त है । उनकी ख्याति सर्वत्र है ऐसा अर्थ भी यहाँ हो सकता है। ‘ललितासहस्रनाम' में ‘दिव्यगन्धाढया' ऐसा भगवती का नाम है (६३१) भास्करराय वहाँ लिखते हैं - दिवि भवा दिव्या देवादयश्चेतनाचेतनात्मकपदार्थसमूहाः तेषां गन्धैः सम्बन्धैराढ्या परिपूर्णा । न तु राजादिभिरिव भौमैः पदार्थैः परिवृतेति यावत् ।.. .. दिव्यगन्धो हरिचन्दनादिपरिमलो वा तेनाढ्या गन्धद्वारा दुराधर्षामिति श्रुतेः । अथवा श्रोत्राकाशयोः सम्बन्धे 'संयमाद्दिव्यमिति योगसूत्रे श्रवणेन्द्रियाकाशयोः सम्बन्धे कृतसंयमस्य योगिनो दिव्यं श्रोत्रं भवति तेन दिव्यशब्द श्रवणं भवतीत्युक्त्तम् । तुल्यन्यायेन तत्सर्वेन्द्रियाणामुपलक्षणम् । तेन दिव्यगन्धा आढ्याः सम्पन्ना यया यत् प्रसादात् सेत्यर्थः । यहाँ 'सुगन्धि' के अन्य अर्थ, प्राप्त हो सकते हैं - 742
SR No.007005
Book TitleWorld of Philosophy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChristopher Key Chapple, Intaj Malek, Dilip Charan, Sunanda Shastri, Prashant Dave
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2011
Total Pages1002
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size30 MB
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