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________________ 'त्रयम्बकमन्त्र' का तन्त्रार्थ -डॉ. हर्षदेव माधव त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टि वर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योमुक्षीय मामृतात् ।। (ऋग्वेद ७-५९-१२) इस ऋचा के द्रष्टा वशिष्ठ मैत्रावरुणि है, अनुष्टुप छन्द है, और रुद्र देवता है। हम सुगंधयुक्त शरीरवाले, पुष्टिवर्धक, त्रण नेत्रोंवाले देव का यजन करते है वह हमको पकी ककड़ी (या खरबुजा) की तरह मृत्यु के बंधन से मुक्त करे, लेकिन अमृत (अमरता) से अलग न करे - ऐसा भावार्थ है। यहाँ 'सुगन्धि पुष्टिवर्धनं त्र्यम्बकम्' ये तीन शब्द रुद्र के विशेषण है। मेक्समूलर त्र्यम्बक के अर्थ के बारे में सन्देह व्यक्त करते हैं सायण के मत से त्र्यम्बक तीन देव ब्रह्मा, विष्णु, महेश है। जिस तरह ककड़ी या खरबुजा पक जाने के बाद अपने आप डाली से अलग हो जाय इस तरह मृत्यु या संसार से मुक्त होने की प्रार्थना है।' अब यहाँ मन्त्र के प्रत्येक शब्द का अर्थ समजने की कोशिश करेंगे। - त्र्यम्बकम् - ऋग्वेद की आवृत्ति में इस ऋचा के साथ अलग अर्थ प्राप्त है । डोलरराय मांकड ने इसकी चर्चा की है। वयं त्र्यम्बकं त्रिलोचनं यजामहे । त्र्यम्बकं त्रिलोकस्य मातृभूतं पालकमित्यर्थः (MS E 1HZ 612) त्र्यम्बकंत्रिनेत्रं महादेवं यजामहे पूजयामः। सायण ‘त्रयाणां ब्रह्मविष्णुरुद्राणामम्बकं पितरं । ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र के पिता ऐसे त्र्यम्बक ऐसा अर्थ देते हैं। त्र्यम्बक का निर्वचन 'त्रीणि अम्बकानि यस्य सः शिव, महादेव, त्रण नेत्रोवाले शिव ऐसा भी किया जाता है। 'त्रिपुरातापिन्युपनिषत्' में त्र्यम्बक का अर्थ निम्नलिखित है - 'कस्मात् त्र्यम्बकमिति । त्रयाणां पुराणामम्बकं स्वामिनं तस्मादुच्यते त्र्यम्बकमिति' शिव स्थूल, सूक्ष्म एवं कारणमय तीन शरीर के स्वामी होने से 'त्र्यम्बक' है। तान्त्रिक दृष्टि से त्रिकोण में महाकामेश्वरी, महावज्रेश्वरी और भगमालिनी ये तीन अम्बाओं के साथ त्रिपुरसुन्दरी मध्यबिन्दु में स्थित है। वही त्रिपुराम्बा है। त्रिपुरा के साथ सामरस्य में स्थित शिव ही त्र्यम्बक है। 741
SR No.007005
Book TitleWorld of Philosophy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChristopher Key Chapple, Intaj Malek, Dilip Charan, Sunanda Shastri, Prashant Dave
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2011
Total Pages1002
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size30 MB
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