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मे यहीं अंतर है। किंतु इनमें इतनी दूरी नहीं है, जिससे एक ही आचरण को धर्म का समर्थन और नैतिकता का विरोध प्राप्त हो ।
व्यक्ति और समाज - दोनों का समन्वय साधकर यदि व्यवस्था को आगे बढ़ाया जाता है तो विकास सहज होता है । व्यक्ति और समाज की प्रगति का आधार है, परस्परोपग्रह, संवेदनशीलता, स्वामित्व की सीमा, स्वतंत्रता की सीमा, भाषा, चित्तन, शिल्प, कला, साहित्य शिक्षा, व्यवसाय और उद्योग का विकासा प्रगति का पहला चरण हैं - संकल्प औपर दूसरा चरण है पुरुषार्थ । अतएव हमारे संसार की प्रगति का मुख्य सूत्रकार व्यक्ति ही है। समाज का भ्रष्टाचार (Corruption) से मुक्त होना भी उतना ही अनिवार्य है । अन्यथा सामाजिक स्तर का भ्रष्टाचार प्रगति के महल को धराशायी करने के लिए पर्याप्त होता है
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