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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
157) Sohavva lakkhanamuham......
(p. 412) सोह व्व लक्खण-मुहं वणमाल व्व विअडं हरिवइस्स उरं। कित्ति व्व पवण-तणअं, आण व्व बलाइँ से विलग्गइ दिट्ठी ॥ . (शोभेव लक्ष्मण-मखं वनमालेव विकटं हरिपतेहरः । कीतिरिव पवन-तनयमाज्ञेव बलानि तस्य विलगति दृष्टिः ॥)
-Setu I. 48
This verse is cited also in SK ( IV. v. 19, p. 410 ) in identical context. 158) Papphuria uththa (?) dalaam......
(p. 413) पप्फुरिअ-उट्ठ-दलों, तक्खण (? तक्काल)-विगलिअ-रुहिर-महु-विच्छडं । उक्खडिद (? उक् खलिअ)-अंठ-णालं, पडिअं फुडदसणकेसरं मुह-कमलं॥ (प्रस्फुरितोष्ठद लं तत्क्षण (? तत्काल)-विगलित-रुधिर-मधु-विच्छर्दम् । उत्खण्डित-कण्ठ-नालं पतितं स्फुट-दशन-केसरं मुख-कमलम् ॥)
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The reading ' takkhana ' renders the line metrically defective. The reading takkala' is based on the cchāyā : ' tatkala' as given by the commentator. This verse is cited also in SK (IV. v. 37, p. 422 ) in identical context.
Totumbhaannapadivaana......
. (p. 414) तो कुंभअण्ण-पडिवअण-दंड-परिघट्टिआमरिसघोरविसो। गलिअंसुअ-णिम्मोओ, जाओ भीसणअरो दसाणण-भुअओ॥ (ततः कुम्भकर्ण-प्रतिवचन-दण्ड-परिघट्टितामर्षघोरविषः । गलितांशुक-निर्मोको जातो भीषणतरो दशानन-भुजगः ॥)
This verse is cited also in SK (IV. v. 38, p. 422 ) in identical context.
160) Sohai visuddha-kirano......
(p. 414) सोहइ विसुद्ध-किरणो गअण-समुद्दम्मि रअणि-वेला-लग्गो। तारा-मुत्ता-वअरो, फुड-विहडिअ-मेह-सिप्पि-संपुड-विमुक्को (? मुक्को) ॥ (शोभते विशुद्ध-किरणो गगन-समुद्रे रजनी-वेला-लग्नः । तारा-मुक्ता-प्रकरः स्फुट-विघटित-मेघ-शुक्ति-संपुट-मुक्तः॥)
-Setu I. 22
This verse is cited also in SK ( IV. v. 41, p. 424 ) in identical context.