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निर्वृति II.9 वसन्तमासक० (वसान्त्रमासक). भणामो S. No. 73 ०सामलेण ०पणाम ज्योत्स्ना ०पीडणेणं प्रियसखि सखि प्रसन्नं
ताडयति धराधरं S. No. 110 GS III. 88 सरः सअल-करण० First cited in Locana p. 274 फल-संपत्त्या दिण्ण-फला/ ०दत्तफला० जलिपतं खलु तस्य कण्णउर सअज्जिआ दुग्गा अज्ज...अज्जं विक्कमाइच्च and Vajja 284 sense of the passage. In the first eight chapters of the SP there are twentytwo.
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Appendix - I. p. 1. 119-10