________________
126
425
427
437 440
441
442
.
445 446
449
450
परवधूरसौ
रात्र्यन्धक मा पिआणं अण्णावि अकावि (? अण्ण च्चिअ कावि) मग्गिअ-लद्धे बलमोडि-चुंबिए अप्पणेण
उवणीए। मागित-लब्ध बलात्कारेण चुम्बिते
आत्मनोपनीते। एकस्मिन् प्रियाधरेऽन्येऽन्ये भवन्ति
. रसभेदाः। छिप्पंति शङखपात्र (?णुण्णिहिसि) . सोवाणारहण सोपानारोहण वंदिज्जउ...कि कीरउ ०च्छेत्तं निज-दयिता GS (W)957 पओहर-फंस वहइ व/ वहतीव कोमुईवासो काल-वेस-वस णच्चणअम्मि शाल्मलि० मुच्छई (p. 150) विआसिआसो० नवलता जणेति कुरङगाक्षि रसाउला First cited in SP (Volu. p 247) First cited in ŚP (Vol. I. p. 247) First cited in DHV (p. 283);
456 458 462 466
467 468
469
101 103 115
473
476
478 479
480