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Prakrit Verses In Vagbhata's Kāvyanusasana (With his Svopajña Commentary Alamkāratilaka)
(Chapter XV: pp. 528-533)
अधरदलं ते तरुणा अलोल-कमले चित्ते आसण्णकुडंगे जुण्ण उच्चिणसु पडिअ-कुसुमं
20.532 22.533 10.530 11.531
ए एहि किं पि कोए कायं खायइ छुहिओ/खुहिओ क्रीडन्ति प्रसरन्ति मधु गाहाण रसा महिलाण चंक (? वंक) भणियाई कत्तो चंद तुमं न गणिज्जसि चम्पककलिकाकोमल जं मुक्का सवणंतरेण जुण्हाऊरिय कोसकंतिघवले पउरजुवाणो गामो फुल्लुक्करं कलमकूरसमं बिबुठे (बिंबोठे) मयणं न दिति भम धम्मिअ वीसत्थो
.. 14.531
7.530 21.533 6.530
9.530 12.531 19.532 2.528
3.529 15.531
5.529 23.533 8.530
Rudrata IV. 20 Devisataka 74 SPp. 629, p. 1192,GS(W).959
Cited in DHV (p. 283), GS(W) 959 Cr. KP X. v. 471 (p. 655) Cf. SK (p. 22) Rudrata IV. 21 Vojja 13 Vajja, 284*3, Cf. SP (p. 903) Rudrata IV. 19 KM I. 29
माणं मुंचध (ह) देह वल्लहजणे शूलं शलन्तु शं वा विशन्तु सज्जणसंगेण वि दुज्जणस्स सरले साहसरागं सह दिअस (ह) णिसाहिं सा (? सो) जयइ कूडबरडो
11.528 18.532 16.532 17.532 13,531 4.529
GS II. 97 KM I. 19 KM I. 13 GS II 75, Cited in DHV p. 52 KM 1. 18 .Rudrata IV, 18 GRK v. 104
Malati VI. 10 KM II.9 Cf. Prabandha v. 171 (p. 75)