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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
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43) Mahila-sahassa-bharie......
(p. 155, v. 178) महिला-सहस्स-भरिए तुह हिअए सुहय सा अमायंती। अणुदिणमणण्णकम्मा अंगं तणुयं पि तणुएइ ॥ (महिला-सहस्र-भृते तव हृदये सुभग! सा अमान्ती। अनुदिनमनन्यकर्मा अङ्गं तनुकमपि तनयति ॥)
-GS II. 82, Cited earlier in KP IV. (p. 145)
44)
Nihuaramanammi ...
(p. 161, v. 188) निहुय-रमणम्मि लोयण-वहम्मि/पहम्मि पडिए गुरूण मज्झम्मि । सयल-परिहार-हियया वणगमणं चेव/चेअ महइ वहू ॥ (निभूत-रमणे लोचनपथे पतिते गुरूणां मध्ये । सकलपरिहारहृदया वनगमनमेव काङ्क्षति वधूः ॥)
-Cited earlier in KP VII. V. 328 (p. 439); ____GS (W) 987
__45)
Ekatto ruai pia.....
(p. 168 [Viveka] v. 187) एकत्तो रुअइ पिआ अण्णत्तो समर-तूर-निग्घोसो। नेहेण रणरसेण य भडस्स दोलाइयं हिअअं॥ (एकतो रोदिति प्रिया अन्यतः समर-तूर्य-निर्घोषः । स्नेहेन रणरसेन च भटस्य दोलायितं हृदयम् ॥)
__-Cited earlier in DHV III. (p. 383)
..46) Samhaya-cakkāyajuā .....
(p. 205, v. 215) संहय-चक्कायजुया वियसिअकमला मुणाल-संछण्णा । वावी वहु व रोयण-विलित्त-थणया सुहावेइ ॥ (संहत-चक्रवाक-युगा विकसित-कमला मृणालसंछन्ना । वापी वधूरिव रोचन-विलिप्त-स्तनी सुखयति ॥)
-Cited earlier in SK I. v, 36
___47) Ahimava-manahara......
(p. 207, v. 227) अहिणव-मणहर-विरइय-वलय-विहूसा विहाइ नव-वहुया । कुंदलय व्व समुप्फुल्ल-गुच्छ-परिलित-भमर-गणा ॥ (अभिनव-मनोहर-विरचित-वलय-विभूषा विभाति नववधूका ( = नववधूः)। कुन्दलतेव समुत्फुल्ल-गुच्छ-परिलीयमान-भ्रमर-गणा ॥)
-Cited earlier in SK I. v. 37