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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
(p. 1182)
1456) Sohaivisaddhasiddha (?)......
सोहइ विसुद्ध-सिद्धत्थको अदंतुर-विसुद्ध-सीमंतो। गुंफिअ-सिणिद्ध-दर-प्पसिढिलालअ-केस- विण्णासो ॥ (शोभते विशुद्ध-सिद्धार्थको ऽ दन्तुर-विशुद्ध-सीमन्तः । गुम्फित-स्निग्धेषत्-प्रशिथिलालक-केश-विन्यासः ॥)
1457) Bamdhuriaduddhavihaamda (?)......
(p. 1182)
The second half is
Note : The first half of this gātha is corrupt and defies restoration. restored as follows:
सहिअण-मुहेसु लज्जाक (?ल) साइँ घोलंति अच्छीइं॥ (सखोजनमुखेषु लज्जालसानि घूर्णन्त्यक्षीणि ॥)
1458)
Majjhimarehagaagadha (?)......
(p. 1182)
This verse / gātha is corrupt and therefore, obscure.
1459)
Desavisamanāmittavi (?).....
(p. 1182)
This verse / gātha is corrupt and therefore, obscure.
1460)
Rehakapiapadirambhana (?).......
__(p. 1182) रेहइ पिअ-परिरंभण-पसारिअं सुरअ-मंदिर-दारे। हेला-हल्लाविअ-थोर-थणहरं भुअ-लआ-जुअलं ॥ (राजते प्रिय-परिरम्भण-प्रसारितं सुरत-मन्दिर-द्वारें। . हेला-कम्पित-स्थूल-स्तन-भरं भुज-लता-युगलम् ॥)
-Cf. SKV, v. 164, p. 620
1461)
Na cchivasi pupphavaim (?)......
___(p. 1182) जइ ण छिवसि पुप्फवई पुरओ ता कीस वारिओ ठासि । छिक्को सि चुलुचुलतेहि पहाविऊण म्ह हत्थेहि ॥ (यदि न स्पृशसि पुष्पवती पुरतस्तहि कस्माद् वारितस्तिष्ठसि । स्पृष्टोऽसि स्पन्दमानाभ्यां प्रधाव्य मम हस्ताभ्याम् ॥)
-GS V.81
This gātha is also cited in SK (V. v. 166, p. 620)