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________________ 228 Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics 993) Dhario amarisapasaro...... (p. 986) धरिओ अमरिस-पसरो, माण-क्खलणे वि ण पडिओ च्चिअ वाहो। तीऍ णवरं पिअअमे गहिए अणिअत्त-लोअणं णीससि ॥ (धृतोऽमर्ष-प्रसरः, मान-स्खलनेऽपि न पतित एव बाष्पः। तया केवलं प्रियतमे गृहीते ऽ निवृत्त-लोचनं निःश्वसितम् ॥) 994) Majjha samuhavaraham...... (p. 987) मज झ समुहावराहं तुहं करंतस्त दलिअ-दक्खिण्ण-गणं। अगणिअ-परिवाअ-भअं जुअइ-जणम्मि वहत्तणं णिवडिअं(? वह-बंधणं णीवडिअं)॥ (मम संमुखापराधं तव कुर्वतो, दलित-दाक्षिण्य-गुणम् । अगणित-परिवाद-भयं युवति-जने वध-बन्धनं निपतितम् ॥) 995) Paccakkhamantuāraa...... (p. 987) पच्चक्ख-मंतु-आरअ जइ चुंबसि मे इमे हअ-कओले। तो मज्झ पिअ-सहीए विसेसओ कोस तण्गाओ ॥ (प्रत्यक्ष-मन्तु-कारक यदि चुम्बसि मे इमौ हत-कपोलो। तर्हि मम प्रिय-सख्याः विशेषकः कस्माद् आर्द्रः॥) -GS (W) 938 996) Pattia na pattiamti...... __(p. 987) पत्तिअ ण पत्तिअंती जइ तुज्झ ण होंति (पा. भे. इमेण) मज्झ रुइरोए। पुट्ठीऍ बाह-बिंदू पुलउब्भेएण भिज्जंता॥ (प्रतीहि न प्रतियन्ती यदि तव न भवन्ति (पा. भे. इमे न)मम रोदनशीलायाः । पृष्ठे बाष्पविन्दवः पुलकोद्भदेन भिद्येरन् ।) -GS III. 16 997) Painā vannijjamte...... (p. 988) पइणा वणिज्जंते अक्खाणअ-सुंदरीएँ रूवम्मि । ईसा-मच्छर-गरुअं घरिणी हुंकारअं देइ ॥ (पत्या वर्ण्यमान आख्यानक-सुन्दर्या रूपे। ईर्ष्या-मत्सर-गुरुकं गृहिणी हुंकारकं ददाति ॥) -GS (W) 868
SR No.006959
Book TitlePrakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV M Kulkarni
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1988
Total Pages790
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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