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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
981) Jattha na ujjaggirao......
(p. 982)
This gātha [GS (W) 829] is already cited on p. 837. Vide S. No. (768) supra.
982) Pariucchia na jampai......
(p. 982) परिउच्छिआ ण जंपइ गहिआ वि प्फुरइ चुंबिआ रुसइ। तुहिक्का णव-वहुआ कआवराहेण दइएण॥ (परिपृष्टा न जल्पति गृहीताऽपि स्फुरति चुम्बिता रुष्यति । तूष्णीभूता नव-वधूः कृतापराधेन दयितेन ॥)
-Cf. GS (W) 923 983) Tanudia varai......
(p. 982). तणुआइआ वराई दिअहे दिअहे मिअंकलेह व्व। बहुलपओसेण तुए णिसंस अंधारिअ-मुहेण ॥ (तनुकायिता क्राकी दिवसे दिवसे मृगाङ्कलेखेव । बहुल-प्रदोषेण त्वया नृशंस अन्धकारित-मुखेन ॥)
-Cf. GS (W) 919 984) Panaakuiana donnavi......
— (p. 982)
This gathā (GS I. 27) is already cited on p. 675. Vide S. No. (494) supra.
985) Pecchasi animisanaano......
(p. 983) This gāthā is already cited on p. 632. Vide S. No. (333) supra.
986) Aharyāhe samaam (?)......
(p..984) उवहारिआएँ समअं उअ पिंडारे कहं कुणंतम्मि। णव-वहुआए सरोसं सव्व च्चिअ वच्छा मुक्का॥ (दोहनकारिकया समकं ( = समं, साध) पश्य गोपालके कथां कुर्वति । नववध्वा सरोषं सर्व एव वत्सका( = तर्णका) मुक्ताः॥)
-Cf. GS (W) 731 987) Isamaccaragurue......
(p. 984) ईसा-मच्छर-गरुए साहिक्खेव-परिवड़िओवालंभे। कह कह वि गमेइ खणं विलक्ख-हसिएहि कामिणि-समुल्लावे ॥ (ईर्ष्या-मत्सर-गुरुकान साधिक्षेप-परिवधितोपालम्भान् । कथं कथमपि गमयति क्षणं विलक्ष-हसितैः कामिनी-समुल्लापान् ॥) .
-Setu XI. 16 -