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Introductory essay and tools by Nalini Balbir
IX. Photographic reproduction of Muni Jinavijaya, Vakīl Keshavlal Premchand Modi, “Pro. Lyuman ane Avaśyaka sūtra" published in Jaina
Sāhitya Samsodhak a, Khand 2, Ank 1, July 1923, pp. 81-91
प्रो. ल्युमन अने आवश्यक सूत्र
जर्मनीना प्रसिद्ध ,प्रोफेसर ल्युमन जैन आगमोना घणा ऊंडा अभ्यासी छे. लगभग अर्धा सैका जेटला लांबा समयथी तेओ जैन साहित्यतुं अवगाहन करता आव्या के अने अनेक जैन सत्रोप्रन्योना सूळ, नियुक्ति, भाष्य, टीका,टिप्पणी आदिने अर्वाचीन शासीय पद्धतिए संशोधित-अनुवादित करी तेमणे प्रकाशमा आण्या छ.ए वधामा आवश्यकसूत्र अने तेने लगता साहित्य उपर जे तेमणे अथाग परिश्रम उठाव्यो छे अने ते विषयमा जे निबन्धो आदि लख्या छे ते तो खरेखर तेमनी जैन साहित्य विषयक सूक्ष्म-प्रवीणतानी आश्चर्यकारक साक्षी आपे छे.
जर्मनीना लीप्झीक शहेरमाथी प्रकट थती ओरिएन्टल सोसायटीनी प्रन्थमाळा (Abhand. lungen fur die Kunde des Morgenlandes) मां आवश्यक-कथा (Die Avashyaka Erzahlungen) नामे एक प्रन्थ छपाववानी तेमणे सुरुआत करी हती,जेमा आवश्यक सूत्रनी चूर्णि अने टीकामां आवती बधी कथाओ मूळ रूपे आपी, जुदी जुदी प्रतोमा मळी आवतां तेमनां पाठान्तरो तथा बीजा बीजा प्रन्थोमा मळी आवतां रूपान्तरोनी घणी विस्तृत रूपरेखा आलेखवानी तेमनी इच्छा हती. परंतु, ते माटे जोइतां यधां साधनो-भाष्य, चूर्णि, टीका आदिनी जुदी जुदी प्रतो विगेरे-न मळी शकवाथी, पचासेक पानां छापी तेमने ए कार्य बन्ध करवु पडणुं हतुं. ते दरम्यान सने १८९४ मां जिनेवा (Geneve) मां भराएली इन्टर नेशनल ओरिएन्टल कोंग्रेसमां वांचवा माटे आवश्यकसूत्र साहित्य उपर जर्मन भाषामां एक विस्तृत निबंध तेमणे तैयार कयों हतो जेमा आवश्यक सूत्रने लगतुं जेटलुं साहित्य मळी आवे छे तेनुं अतिसूक्ष्मरीते विवेचन कयु हतुं.ए निबन्ध (Uebersicht uber die Avashyaka-Litteratur) ना नामे तेमणे स्वतंत्ररीते प्रकट कर्यो छे; जेना डेमी साइझना आखा कागळ जेवडा ५० उपर पानां छे. एमां प्रथम श्वेतांबर अने दिगंबर बने जैन संप्रदायोमा आवश्यकने शुं स्थान छे ते यताव्यु छ; अने पछी आवश्यक सूत्रनी भद्रवाहुकत नियुक्तिमा आवता बधा विषयोनो बहु खूबी भरेलो सार आप्यो छे. ए सारमा साथे साथे नियुकिमा
आवता विषयोने बीजां बीजां सूत्रो अने भाष्यो विगेरेमा आवता तेज विषयो साथे, कोष्टको करी करी गाथाओवार सरखान्या छे. आवश्यकचूर्णि अने हरिभद्रकृत टीकामां परस्पर जे जे विशेष छे से सपळा मूळ पाठो साथे समजाव्या छे. पछी जिनभद्र क्षमाश्रमणकृत विशेषावश्यक भाष्यनुं बाणथी विवेचन कयु छे. एमां पण पहेलां, विशेषावश्यक ए शुं छे, तेनी टीका विगेरे कोणे करेली , ए बताव्युं छ; अने त्यार बाद नियुक्तिनी गाथाओने भाष्यना विवरण साये विषयवार सप्तजावी के. अने ए उपरांत पछी आखा भाष्यनो सार आप्यो छे. एटलं करीने पण ए जर्मनदेशीय संतोष न थयो तेथी ए निबन्धनी एक जदी पर्ति करी छे, जेमा विशेषावश्यक भाष्यनी शीलांकाबायकन प्राचीन अने दुर्लभ्य दीकामां जे जे विशेष विशेष उल्लेखो छे ते बघा सूळरूपे गाथावार पानी दीपा के अने ऐवढे प ठीकानी सौमी जूनी ताडपत्रनी प्रति जे हालमा पूनाना भांडारकर
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