SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनाप-शनाप जल-बर्बादी के अड्डे हैं। देश में अधिकतम कत्लखानों की संख्या लगभग 4000 हैं और अनधिकृत करीब दो लाख | भारत सरकार द्वारा प्रकाशित वार्षिक सन्दर्भ पुस्तक 'भारत-1995' में 'कार्टमेन के अध्यक्ष प्रो. एन.एस. रामास्वामी के अनुसार मुम्बई स्थित देवनार कत्लखाना प्रतिवर्ष 44,58,000 करोड़ लीटर पेयजल का उपयोग करता है। इससे कत्लखानों में होने वाली जल-खपत का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। कत्लखानों को बन्द, कम या नियन्त्रित करके धरती पर अपरिमित पेयजल की बचत की जा सकती है।" आज जब झील-जलाशय, नदी-नाले, ताल-तलैया सूख रहे हैं और प्रदूषित हो रहे हैं, भूमिगत जलस्तर भी नीचे से नीचे खिसकता जा रहा है, वर्षा अनिश्चित और अपर्याप्त हो रही है, जल के बचे-खुचे प्राकृतिक स्त्रोतों पर भी व्यापारियों की नजर लग गई है, ऐसे में जल की महिमा को जानने-समझने वाली संयमित व शाकाहारी भारतीय जीवन शैली को किसी भी रूप में बढ़ावा देना समय की मांग है और आवश्यकता भी। वैज्ञानिक अभियन्ता और प्रबुद्ध श्रावक डॉ. जीवराज जैन ने इस आवश्यकता की दिशा में अनोखे ढंग से पुरुषार्थ किया है। यह पुस्तक उनकी वैज्ञानिक और आगमिक जानकारी के अनूठे संगम का सुफल है। आगम साहित्य और आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने पानी जैसी सामान्य-सी प्रतीत होने वाली अनमोल चीज़ पर अनेक दृष्टियों से अनुचिन्तन किया है। जैन श्रमण जीवन में नियमतः अचित्त जल का ही प्रयोग किया जाता है और गृहस्थ जीवन में भी विशिष्ट साधना करने वाले श्रावक-श्राविकाएँ अचित्त जल का प्रयोग करते हैं। धोवन पानी अचित्त जल का ही एक प्रकार है। जैन समाज में बोलचाल में इस शब्द का व्यापक प्रयोग किया जाता है लेकिन धोवन पानी पर संभवतः पहली बार ऐसी तथ्यपरक पुस्तक सामने आई है। इस पुस्तक में धोवन पानी के साथ-साथ पानी का जो वैज्ञानिक, जीव-वैज्ञानिक, रासायनिक और भौतिक विश्लेषण और विवेचन किया गया है, वह अपने आप में अद्वितीय है। जैन दर्शन में वर्णित पाँच स्थावर काय में से अभी तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy