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________________ जल-रक्षण का मंगल सन्देश भी समाया हुआ है। जल-रक्षण के विषय में आचार्य श्री हस्ती ने कहा था-"सोना-चाँदी और वस्त्राभूषण के बिना आदमी रह सकता है। पर जल के बिना एक दिन भी नहीं रह सकता। अतः सद्गृहस्थ को यह ध्यान रखना चाहिये कि पानी की एक बून्द भी व्यर्थ नहीं जाए।" आप्तवचनों एवं गुरुजनों की ऐसी हितकारी शिक्षाओं को एक जैन गृहस्थ अपने जीवन में अपनी भावना और सामर्थ्य के अनुसार पालन करता है। गृहस्थ जीवन में शील-व्रत के पालन में भी जल-रक्षण का परोक्ष सन्देश छिपा हुआ है। इसी प्रकार अन्य व्रतों के पालन में भी संसाधनों के न्यूनतम और विवेकसम्मत उपयोग की प्रेरणाएँ विद्यमान हैं। ____ आज भी भोग/उपभोगवादी जीवन शैली में पानी की फिजूलखर्ची अत्यधिक बढ़ गई है। यह तथ्य बहुत कम लोग जानते हैं कि मांसाहार जल-दुष्काल का एक बड़ा कारण है। डॉ. दिलीप धींग ने अपने शोध प्रबंध 'जैन आगमों का अर्थशास्त्रीय मूल्यांकन' में लिखा है- "एक पौण्ड (0.453592 किलोग्राम) मांस के उत्पादन में औसतम 2500 गैलन (एक गैलन = 3.788 लीटर) पानी लगता है। इतने जल से एक पूरे परिवार का महिने भर का काम चल जाता है। जबकि एक पौण्ड गेहूँ के उत्पादन में सिर्फ 25 गैलन पानी लगता है। अमेरिका में एक मांसाहारी के दिनभर आहार-उत्पादन में 4000 गैलन से अधिक जल लगता है। जबकि एक शुद्ध शाकाहारी के आहार पर सिर्फ 300 गैलन जल खर्च होता है। यह हैरानी की बात है कि जितने जल से एक शाकाहारी पूरे वर्ष काम चला लेता है, मांसाहारी उस जल का उपयोग केवल एक महिने में ही कर लेता है। डॉ. धींग आगे लिखते हैं- "कृषि और मांस-उत्पादन में लगने वाले जल की तुलना भी चौंकाने वाली है। एक पौण्ड गेहूँ के उत्पादन में जितना जल लगता है, उससे 100 गुना अधिक जल एक पौण्ड मांस के उत्पादन में लगता है। मांस के उत्पादन में जितना पानी लगता है, धान्य (चावल) के उत्पादन में उसका 10वाँ भाग ही लगता है। पानी हर प्रकार से शाकाहार में मांसाहार की तुलना में कई गुना कम लगता है। कत्लखाने में भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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